
रेलवे क्लेम घोटाला: तीन वकील गिरफ्तार, 50 करोड़ की गड़बड़ी
सारांश :
ईडी ने पटना, नालंदा और बेंगलुरु में छापेमारी कर रेलवे क्लेम घोटाले में तीन वकीलों—विद्यानंद सिंह, परमानंद सिंह, और विजय कुमार को गिरफ्तार किया। आरोपियों ने 900 मामलों में दावेदारों के नाम पर फर्जी बैंक खाते खोलकर 50 करोड़ रुपये गबन किए। जांच जारी है।
Report By : News Era || Date : 24 Jan 2025 ||
रेलवे क्लेम घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने बुधवार को बड़ा कदम उठाते हुए पटना, नालंदा, और बेंगलुरु समेत चार स्थानों पर एक साथ छापेमारी की। मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार से जुड़े इस मामले में ED ने तीन वकीलों—परमानंद सिंह, विद्यानंद सिंह, और विजय कुमार—को गिरफ्तार किया है। छापेमारी के दौरान ईडी को बड़ी संख्या में दस्तावेज, डिजिटल रिकॉर्ड, खाली चेक, और अन्य अहम सबूत मिले हैं।
कैसे हुआ घोटाला? साजिश की पूरी कहानी
ईडी की जांच में यह सामने आया है कि यह घोटाला रेलवे दावा न्यायाधिकरण (Railway Claims Tribunal) के अंतर्गत आने वाले आकस्मिक मृत्यु और दावों के मामलों से जुड़ा है। आरोप है कि वकीलों ने दावेदारों के नाम पर फर्जी तरीके से बैंक खाते खोले, जिनका संचालन वे खुद करते थे। मुआवजा राशि का एक छोटा हिस्सा ही वास्तविक दावेदारों को दिया गया, जबकि अधिकांश राशि इन वकीलों और उनके साथियों ने हड़प ली।
घोटाले की गहराई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि करीब 900 मामलों में फर्जीवाड़ा हुआ। इन मामलों में न्यायाधीश आर.के. मित्तल ने आदेश जारी किए थे, जिनके आधार पर मुआवजा राशि जारी की गई। इस राशि को वकीलों ने योजनाबद्ध तरीके से दावेदारों के खातों में स्थानांतरित कर नकद निकासी की।
मुआवजा राशि और वकीलों की टीम का काला खेल
घोटाले के तहत दावेदारों को लगभग 50 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया था। हालांकि, वास्तविक दावेदारों को इसका केवल एक हिस्सा मिला, जबकि शेष धनराशि को आरोपियों ने फर्जी बैंक खातों और जाली दस्तावेजों के माध्यम से अपने पास रखा। दावेदारों के नाम पर खोले गए इन खातों में नकद निकासी और धन हस्तांतरण कर वकीलों ने लाखों रुपये का गबन किया।
900 मामलों में फर्जीवाड़ा, जज की भूमिका भी संदेह के घेरे में
जांच में यह भी सामने आया कि इन 900 मामलों में आदेश पारित करने वाले जज आर.के. मित्तल की भूमिका भी संदिग्ध है। यह घोटाला केवल वकीलों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें न्यायपालिका और रेलवे प्रशासन के कुछ कर्मियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है।
ईडी को मिले ठोस सबूत: दस्तावेज और डिजिटल रिकॉर्ड
ईडी को छापेमारी के दौरान कई अहम सबूत मिले हैं। इनमें दावेदारों के हस्ताक्षर वाले खाली चेक, खाली कागजात, और डिजिटल डेटा शामिल हैं। इसके अलावा, वकीलों और जज के नाम पर अर्जित संपत्तियों की भी जानकारी हाथ लगी है। इन संपत्तियों की जांच की जा रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह धन कहां और कैसे इस्तेमाल हुआ।
विशेष अदालत में पेशी के बाद आरोपियों को जेल भेजा गया
गिरफ्तारी के बाद तीनों आरोपियों को पटना स्थित विशेष न्यायालय (PMLA) के समक्ष पेश किया गया। अदालत ने सुनवाई के बाद उन्हें जेल भेजने का आदेश दिया। ईडी ने अदालत को बताया कि यह मामला संगठित अपराध का एक बड़ा उदाहरण है, जिसमें न्यायपालिका, प्रशासन, और वकीलों का एक बड़ा नेटवर्क शामिल है।
जांच अभी जारी: और बड़े खुलासे की संभावना
ईडी ने यह भी संकेत दिया है कि इस मामले में और भी कई लोग आरोपी हो सकते हैं। जांच एजेंसी अन्य व्यक्तियों की भूमिका और उनके संबंधों की पड़ताल कर रही है। संभावना है कि आगे की जांच में और भी बड़े नाम सामने आ सकते हैं।
विश्लेषण: न्याय तंत्र और प्रशासन पर गंभीर सवाल
रेलवे क्लेम घोटाला न केवल भ्रष्टाचार और काले धन की एक गंभीर तस्वीर पेश करता है, बल्कि यह न्याय और कानून की पारदर्शिता पर भी गहरा सवाल खड़ा करता है। दावेदारों के नाम पर बैंक खाते खोलकर और उनके अधिकारों का हनन कर जिस तरह से सार्वजनिक धन का दुरुपयोग किया गया, वह न्यायपालिका और प्रशासन के भरोसे को कमजोर करता है।
इसके अलावा, इस घोटाले में न्यायाधीश की संदिग्ध भूमिका ने न्यायपालिका की साख पर भी गंभीर चोट पहुंचाई है। यह मामला दिखाता है कि कैसे भ्रष्टाचार और अनियमितता के कारण आम लोगों को उनके हक से वंचित किया गया।
कड़ी कार्रवाई और पारदर्शिता की जरूरत
रेलवे क्लेम घोटाला एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है, जिसमें न्याय और कानून के रखवालों ने खुद इसमें भाग लिया। ईडी की जांच और आगे की कार्रवाई से उम्मीद है कि इस मामले में शामिल सभी दोषियों को कानून के दायरे में लाया जाएगा। इसके साथ ही, न्यायपालिका और प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाने की जरूरत है।