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राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी कामेश्वर चौपाल का निधन

धार्मिक न्यूज़

राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी कामेश्वर चौपाल का निधन

संक्षिप्त:

कामेश्वर चौपाल, जिन्होंने 1989 में राम मंदिर शिलान्यास की पहली ईंट रखी थी, का निधन हो गया। उन्होंने ‘रोटी के साथ राम’ का नारा दिया और 2004-2014 तक बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे। 2020 में राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट में बिहार का प्रतिनिधित्व किया। संघ और भाजपा में सक्रिय रहकर उन्होंने दलित उत्थान और सामाजिक समरसता के लिए कार्य किया। उनके निधन पर पूरे देश में शोक की लहर है।

हाईलाइट्स:

  • 1989 में राम मंदिर निर्माण के लिए हुए शिलान्यास में कामेश्वर चौपाल ने पहली ईंट रखी।
  • उन्होंने ‘रोटी के साथ राम’ का नारा दिया, जो व्यापक रूप से लोकप्रिय हुआ।
  • 2004 से 2014 तक बिहार विधान परिषद के सदस्य (एमएलसी) रहे।
  • 2020 में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट में बिहार से प्रतिनिधित्व किया।
  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के माध्यम से समाज सेवा में सक्रिय रहे।
  • दलित समुदाय के उत्थान और सामाजिक समरसता के लिए कार्य किया।
Report By : News Era || Date : 07 FEB 2025 ||

राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी और बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य कामेश्वर चौपाल का निधन हो गया। वह लंबे समय से राम मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे थे और अयोध्या से उनका गहरा लगाव था। कामेश्वर चौपाल की राजनीतिक यात्रा भी उल्लेखनीय रही है। वह 2004 से 2014 तक बिहार विधान परिषद के सदस्य (एमएलसी) रहे। हालांकि, इस दौरान उन्होंने कई बार चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें विशेष सफलता नहीं मिली। उन्होंने दिवंगत नेता रामविलास पासवान के खिलाफ भी चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका

कामेश्वर चौपाल 1989 में राम मंदिर निर्माण के लिए हुए शिलान्यास कार्यक्रम में पहली ईंट रखने वाले व्यक्ति थे। 9 नवंबर 1989 को हुए इस कार्यक्रम में विश्व हिंदू परिषद के बिहार के सह संगठन मंत्री के रूप में वह अयोध्या में मौजूद थे। पहले से तय योजना के अनुसार, धर्मगुरुओं ने उन्हें शिलान्यास के लिए पहली ईंट रखने को कहा था। इस ऐतिहासिक क्षण के बाद उनका नाम पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया। संघ ने उन्हें पहला कार सेवक का दर्जा दिया था।

‘रोटी के साथ राम’ का नारा दिया

राम मंदिर आंदोलन के दौरान कामेश्वर चौपाल ने ‘रोटी के साथ राम’ का नारा दिया था, जो बेहद लोकप्रिय हुआ। उनका मानना था कि समाज को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के साथ-साथ आध्यात्मिक रूप से भी मजबूत करना आवश्यक है। इस नारे के माध्यम से उन्होंने समाज में समरसता का संदेश दिया और यह दिखाने का प्रयास किया कि धर्म और आजीविका दोनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।

संतों के फैसले से थे अनजान

हालांकि, कामेश्वर चौपाल इस बात से बिल्कुल अनजान थे कि धर्मगुरुओं ने किसी दलित को शिलान्यास की पहली ईंट रखने का निर्णय लिया था। बाद में जब यह घोषणा हुई कि वह इस ऐतिहासिक कार्य को करने वाले व्यक्ति होंगे, तो यह उनके लिए एक बड़ा सम्मान था। इस घटना के बाद वह राष्ट्रीय स्तर पर एक चर्चित नाम बन गए।

शिक्षा और संघ से जुड़ाव

कामेश्वर चौपाल का जन्म बिहार के मधुबनी जिले में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक और उच्च शिक्षा मधुबनी में ही पूरी की। पढ़ाई के दौरान ही वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संपर्क में आए। उनके एक अध्यापक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता थे, जिनकी मदद से कामेश्वर चौपाल को कॉलेज में प्रवेश मिला। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पूरी तरह से संघ के प्रति समर्पण कर दिया और उन्हें मधुबनी जिले का जिला प्रचारक बना दिया गया।

राजनीतिक सफर

राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के बाद कामेश्वर चौपाल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। 2004 से 2014 तक वह बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे। हालांकि, उन्होंने कई चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। 2020 में जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट का गठन हुआ, तो भाजपा ने उन्हें बिहार से ट्रस्ट का सदस्य नामित किया।

समाज के प्रति योगदान

कामेश्वर चौपाल सामाजिक समरसता के लिए सदैव प्रयासरत रहे। उन्होंने दलित समुदाय के उत्थान और समाज में समानता लाने के लिए कई कार्य किए। उनका मानना था कि सामाजिक एकता के बिना देश की प्रगति संभव नहीं है। राम मंदिर आंदोलन में उनकी भागीदारी ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और वह धार्मिक व सामाजिक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाते रहे।

निधन पर शोक की लहर

कामेश्वर चौपाल के निधन की खबर से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। भाजपा, संघ और विश्व हिंदू परिषद सहित कई संगठनों ने उनके निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त की। उन्हें राम मंदिर आंदोलन का एक प्रमुख योद्धा माना जाता है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज और धर्म के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया।

उनकी जीवन यात्रा समाज के लिए प्रेरणादायक रही है और उनका योगदान सदैव याद किया जाएगा।

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