
खरांटी के अष्टभुजी मंदिर में सजी आस्था की भव्य छटा, सैकड़ों वर्षों से जुड़ी है माता रानी की पावन मान्यता
Report By: Chitranjann Kumar
औरंगाबाद (ओबरा प्रखंड): औरंगाबाद जिले के ओबरा प्रखंड स्थित खरांटी गांव में विराजमान अष्टभुजी माता मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास और लोकमान्यता का केंद्र है। यह मंदिर सदियों पुराना है, जिसकी जड़ें श्रद्धा और विश्वास में गहराई से समाई हुई हैं। यहां चैत्र नवरात्रि के दौरान भव्य आयोजन होते हैं और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।
मंदिर समिति के अध्यक्ष सहजानंद कुमार ने बताया कि इस मंदिर का इतिहास लगभग 500 वर्ष पुराना है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, माता रानी ने इस स्थान पर रात्रि विश्राम किया था, जो इस स्थान को विशेष महत्व प्रदान करता है। यह स्थल अब शक्ति की उपासना का प्रमुख केंद्र बन गया है।
स्वप्न में दिए गए आदेश से शुरू हुई एक पवित्र यात्रा
मंदिर से जुड़ी एक अद्भुत कथा भी लोगों के बीच प्रचलित है। कहा जाता है कि खरांटी निवासी बजरंग सहाय को एक रात सपने में माता रानी ने दर्शन दिए और कहा, “मैं तुम सबों की कुलदेवी हूं, कोलकाता के कालीघाट में गंगा किनारे निवास कर रही हूं, मुझे वहां से ले आओ।” इस दिव्य संकेत के बाद बजरंग सहाय कोलकाता पहुंचे और गंगाजी में स्नान करते समय माता की मूर्ति उनके हाथों में आ गई। इसके बाद उन्होंने माता को बैलगाड़ी से खरांटी लाया और गांववासियों की सहायता से एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया।
कुंवारी कन्या ने ली स्वयं समाधि, मंदिर को दिया दिव्यता का स्वरूप
मंदिर निर्माण के दौरान एक ब्राह्मण परिवार की कुंवारी कन्या ने स्वयं मंदिर प्रांगण में समाधि ली। ग्रामीणों का मानना है कि उस कन्या में स्वयं देवी का अंश समाहित था। आज भी उस स्थान को श्रद्धा के साथ पूजा जाता है और वहां दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं। यह तत्व इस मंदिर को और भी दिव्य और रहस्यमय बनाता है।
जमींदारी काल से चली आ रही परंपराएं और रिवाज
स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार, जमींदारी प्रथा के दौरान यहां की जमींदार परिवार द्वारा रोजाना मंदिर में भव्य आरती करवाई जाती थी, साथ ही नगाड़े बजाए जाते थे। मंदिर के चारों ओर उत्सव जैसा माहौल बना रहता था। यह परंपरा आज भी विशेष पर्वों और नवरात्रि के दौरान देखी जा सकती है।
यहाँ सप्तमी तिथि की मध्य रात्रि को “निशा बलि” की परंपरा भी रही है, जिसमें बकरे की बलि दी जाती है। वहीं नवमी को भक्त अपनी आस्था के अनुसार बलि चढ़ाते हैं। हालांकि, आजादी से पूर्व भैंसे की बलि देने की परंपरा भी थी, जिस पर अंग्रेजी हुकूमत ने रोक लगा दी थी। उस समय बलि देने वाले राधा यादव की रहस्यमयी मृत्यु हो गई थी, जिसे लेकर आज भी गांव में चर्चा होती है और यह घटना श्रद्धा से जुड़ी मान्यताओं का हिस्सा बन चुकी है।
इस वर्ष भी माता की पूजा धूमधाम से संपन्न, शामिल हुए कई विशिष्ट अतिथि
इस वर्ष भी चैत्र नवरात्रि पर अष्टभुजी माता की पूजा अत्यंत धूमधाम से की जा रही है। मंदिर परिसर को फूलों, झालरों और रोशनी से भव्य रूप से सजाया गया। श्रद्धालु पूरे गांव और आसपास के क्षेत्रों से यहां माता के दर्शन के लिए उमड़े।
हवन और पूजन कार्यक्रम में जिले के कई गणमान्य लोग शामिल हुए। इस पावन अवसर पर आईपीएस अधिकारी मनोज तिवारी, सतेंद्र जी, धनंजय पांडेय, सहित अन्य विशिष्ट अतिथि भी उपस्थित रहे और माता रानी से आशीर्वाद प्राप्त किया।
पूजा समिति के सदस्यों में चूसन पांडेय, लवकुश पांडेय, विष्णु, बाल्मीकि, अंकित, सत्यम, नमन, अमन, अंश और अन्य ने कार्यक्रम की सफलता के लिए दिन-रात मेहनत की। ग्रामीणों का सहयोग और भक्ति देखने योग्य था।
श्रद्धालुओं की आस्था ने मंदिर को बनाया केंद्र बिंदु
इस मंदिर में हर वर्ष हजारों श्रद्धालु पूजा-पाठ, हवन और बलि के लिए आते हैं। यहां न केवल औरंगाबाद जिले से, बल्कि आसपास के गया, नवादा, रोहतास और झारखंड तक से लोग माता के दरबार में हाजिरी देने आते हैं।
श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है। विवाह, संतान प्राप्ति, स्वास्थ्य और सफलता जैसी मनोकामनाओं के लिए भक्तजन माता के चरणों में अर्पण करते हैं प्रसाद, चुनरी और नारियल।