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कैमूर में वक्फ बोर्ड बिल के खिलाफ दलित-मुस्लिम एकजुटता का प्रदर्शन, मंत्री जमा खान का काफिला रोका गया

कैमूर में वक्फ बोर्ड बिल के खिलाफ दलित-मुस्लिम एकजुटता का प्रदर्शन, मंत्री जमा खान का काफिला रोका गया

Report By: Rupesh Kumar Dubey 

भभुआ (कैमूर)।
बिहार के कैमूर जिले का भभुआ शहर मंगलवार को वक्फ बोर्ड बिल के विरोध में उठती नारों की गूंज से थर्रा उठा। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) और भीम आर्मी के संयुक्त बैनर तले दलित और मुस्लिम समुदाय के सैकड़ों लोग सड़क पर उतरे और वक्फ बोर्ड बिल को “काला कानून” बताते हुए केंद्र सरकार के खिलाफ जोरदार आक्रोश व्यक्त किया।

जुलूस से धरने तक: भभुआ में विरोध की सुनामी

पटेल चौक से प्रारंभ हुआ यह आक्रोश मार्च पूरे भभुआ शहर से होते हुए समाहरणालय तक पहुंचा। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। “वक्फ बिल वापस लो”, “संविधान बचाओ”, “जमा खान मुर्दाबाद” जैसे नारों से पूरा शहर गूंज उठा।

भीम आर्मी और AIMIM की साझा मुहिम

इस विरोध प्रदर्शन में AIMIM के स्थानीय नेता बाबू खान और भीम आर्मी के जिला प्रभारी मुकेश कुमार मुख्य रूप से उपस्थित रहे। इन नेताओं ने मंच से केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा और आरोप लगाया कि यह कानून मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संपत्तियों पर हमला है। दोनों संगठनों ने इस बिल को मुसलमानों और दलितों के अस्तित्व पर सीधा हमला करार दिया।

बाबू खान ने कहा,

“सरकार मस्जिदों और मदरसों की संपत्तियों को अपने नाम करने की साजिश रच रही है। यह भारतीय संविधान और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का खुला उल्लंघन है। हम किसी कीमत पर इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।”

मंत्री जमा खान के काफिले को रोका गया

आंदोलन उस समय और अधिक उग्र हो गया जब बिहार सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री और जदयू के वरिष्ठ नेता जमा खान का काफिला विरोध प्रदर्शन के रास्ते से गुजर रहा था। विरोध कर रहे युवाओं ने उनका घेराव करने का प्रयास किया। मंत्री के वाहन पर ‘जमा खान मुर्दाबाद’ के नारे लगे और किसी ने गाड़ी से जदयू का झंडा तक उखाड़ दिया।

स्थिति बिगड़ती देख जमा खान का काफिला वहां से तुरंत रवाना हो गया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, कुछ क्षणों के लिए माहौल तनावपूर्ण हो गया था, लेकिन भारी पुलिस बल की तैनाती से हालात नियंत्रण में आ गए।

विरोध का मुख्य आरोप: “सरकारी हस्तक्षेप से वक्फ संपत्तियां खतरे में”

प्रदर्शनकारियों का मुख्य आरोप है कि नया वक्फ बोर्ड कानून केंद्र सरकार को वक्फ संपत्तियों पर अत्यधिक अधिकार दे देता है, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन हो सकता है। विरोधी नेताओं ने कहा कि:

“जिस तरह केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों को वापस लिया, उसी तरह वक्फ कानून को भी वापस लेना होगा। नहीं तो हम लोग सड़क से लेकर संसद तक आंदोलन करेंगे।”

भीम आर्मी के जिला संयोजक मुकेश कुमार ने कहा,

“यह केवल मुस्लिम समुदाय का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह भारत के संविधान, अल्पसंख्यकों और वंचित वर्गों के अधिकारों की लड़ाई है।”

धरना में दिए गए ज्ञापन और मांगें

भभुआ समाहरणालय पर पहुंचकर प्रदर्शनकारियों ने जिलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में मांग की गई है कि:

  1. वक्फ बोर्ड बिल को तुरंत प्रभाव से वापस लिया जाए।

  2. धार्मिक संस्थाओं की संपत्ति पर सरकारी हस्तक्षेप बंद किया जाए।

  3. अल्पसंख्यकों की धार्मिक आज़ादी की रक्षा की जाए।

  4. मंत्री जमा खान को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाए क्योंकि वे वक्फ बिल के मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं।

जदयू महासचिव आसिफ जमा खान का बयान

जदयू के प्रदेश महासचिव आसिफ जमा खान, जो स्वयं भी अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं, ने इस विरोध को जायज बताया। उन्होंने कहा:

“वक्फ बोर्ड बिल मुसलमानों के धार्मिक हक में दखल है। सरकार इसे वापस नहीं लेती तो हम सब मिलकर बड़ा आंदोलन खड़ा करेंगे।”

उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस आंदोलन में न केवल AIMIM और भीम आर्मी के कार्यकर्ता शामिल थे, बल्कि कई अन्य सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि और स्वतंत्र कार्यकर्ता भी साथ खड़े हुए।

प्रशासन की निगरानी में शांतिपूर्ण समापन

हालांकि शुरुआत में विरोध प्रदर्शन उग्र था, लेकिन बाद में पुलिस और प्रशासन की सख्त निगरानी में यह शांतिपूर्ण तरीके से समाहरणालय पर धरने में तब्दील हो गया। पुलिस अधीक्षक ने मीडिया को बताया कि “स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है, और किसी प्रकार की हिंसा की अनुमति नहीं दी जाएगी।”

वक्फ बिल बना राजनीतिक विस्फोटक मुद्दा

कैमूर में हुआ यह आक्रोश मार्च इस बात का संकेत है कि वक्फ बोर्ड बिल धीरे-धीरे एक बड़े सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे के रूप में उभर रहा है। जिस प्रकार दलित और मुस्लिम समाज एकजुट होकर सड़कों पर उतरे हैं, वह न केवल सरकार के लिए एक चुनौती है, बल्कि आने वाले चुनावों के समीकरणों को भी प्रभावित कर सकता है।

वक्फ बोर्ड बिल को लेकर उठते सवाल, अल्पसंख्यक असुरक्षा और सामाजिक न्याय की बहस अब बिहार के सीमावर्ती जिलों से होते हुए राज्य की राजधानी तक गूंज रही है। यदि सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया, तो यह आंदोलन आने वाले समय में और भी व्यापक रूप ले सकता है।

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