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नाली और विद्यालय की कमी से परेशान मस्तलिचक के ग्रामीणों में आक्रोश, जनप्रतिनिधियों पर उपेक्षा का आरोप

नाली और विद्यालय की कमी से परेशान मस्तलिचक के ग्रामीणों में आक्रोश, जनप्रतिनिधियों पर उपेक्षा का आरोप

संवाददाता – चितरंजन कुमार

औरंगाबाद जिले के ओबरा प्रखंड के अंतर्गत आने वाले मस्तलिचक गांव के निवासी इस समय दो बुनियादी समस्याओं को लेकर गहरे संकट में हैं—नाली निर्माण की अनुपलब्धता और विद्यालय का न होना। ये दोनों मुद्दे ग्रामीणों के लिए वर्षों से पीड़ा का कारण बने हुए हैं, और अब स्थिति इस हद तक पहुंच चुकी है कि गांव के लोगों में स्थानीय जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के प्रति गहरा आक्रोश दिखाई देने लगा है।

मुख्य सड़क बनी गंदे पानी की धारा

ग्रामीणों का कहना है कि गांव में नाली नहीं होने के कारण अधिकांश घरों का गंदा पानी सीधे मुख्य सड़क पर बहता है। यह स्थिति सिर्फ बदबू और असुविधा ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से भी गंभीर खतरा बन चुकी है। घरों से निकलने वाला पानी सड़क पर जमा होकर मच्छरों के प्रजनन का कारण बन गया है, जिससे डेंगू, मलेरिया और अन्य संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ गया है।

ग्रामीण नेपाली कुमार, दीपक कुमार, अभिजीत कुमार, गोविंद कुमार, दिनेश कुमार, बाबूलाल सिंह, रामाशीष राम, निखिल, सुनील और तेजू सहित दर्जनों लोगों ने बताया कि बारिश के मौसम में स्थिति और भी बदतर हो जाती है। सड़क पर पानी भर जाने से लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो जाता है। कई बार स्कूली बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं को फिसलकर गिरने की घटनाएं हो चुकी हैं।

जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों पर गंभीर आरोप

ग्रामीणों ने स्पष्ट रूप से आरोप लगाया कि उन्होंने कई बार इस समस्या को लेकर स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों, जिला परिषद सदस्य और प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO) तक से गुहार लगाई है, लेकिन अब तक कोई ठोस पहल नहीं की गई है।

ग्रामीण कहते हैं कि चुनाव के समय जनप्रतिनिधि वोट मांगने जरूर आते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद जनता की समस्याओं से उनका कोई सरोकार नहीं रह जाता। ग्रामीणों ने बताया कि पिछले पांच वर्षों में कम से कम तीन बार आवेदन और ज्ञापन सौंपा गया, लेकिन अब तक सिर्फ आश्वासन ही मिला है। उन्होंने पूछा – “क्या विकास सिर्फ कागजों में ही होता रहेगा? क्या हम मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसते रहेंगे?”

शिक्षा की स्थिति भी अत्यंत दयनीय

सिर्फ नाली ही नहीं, मस्तलिचक गांव के लोग शिक्षा के क्षेत्र में भी उपेक्षा के शिकार हैं। गांव में आज तक एक भी सरकारी विद्यालय का निर्माण नहीं हुआ है। इससे यहां के बच्चों को बगल के गांवों में जाकर पढ़ाई करनी पड़ती है। ग्रामीणों ने कहा कि यह स्थिति विशेषकर छोटे बच्चों और लड़कियों के लिए खासी चुनौतीपूर्ण है।

लंबी दूरी, परिवहन की कमी और सुरक्षा की चिंता के चलते कई अभिभावक अपनी बच्चियों को स्कूल भेजने में हिचकते हैं, जिससे बेटियों की शिक्षा बाधित होती है। कई बच्चों की पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है क्योंकि प्रतिदिन दूसरे गांवों में जाना आर्थिक रूप से भी संभव नहीं होता।

ग्रामीणों का कहना है कि सरकार एक ओर जहां बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ और सर्व शिक्षा अभियान जैसी योजनाएं चला रही है, वहीं दूसरी ओर गांव के बच्चों को शिक्षा से वंचित रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

गांव की आबादी और विकास की स्थिति

मस्तलिचक गांव की आबादी लगभग 1500 से 2000 के बीच है। यहां के अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर हैं। कुछ लोग मेहनत-मजदूरी करते हैं, जबकि युवा वर्ग में बेरोजगारी की समस्या भी व्याप्त है।

गांव की सड़कें अधिकांशतः कीचड़युक्त और जर्जर स्थिति में हैं। पेयजल की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। हालांकि गांव में बिजली आपूर्ति आंशिक रूप से उपलब्ध है, लेकिन कई बार लंबे समय तक बिजली गुल रहने से दैनिक जीवन प्रभावित होता है।

ग्रामीणों की मांगें क्या हैं?

ग्रामीणों ने सरकार और प्रशासन से निम्नलिखित मांगें रखी हैं: तुरंत नाली निर्माण का कार्य शुरू कराया जाए ताकि जलजमाव की समस्या से निजात मिले। गांव में एक सरकारी विद्यालय की स्थापना की जाए ताकि बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए बाहर न जाना पड़े।

गांव की सड़कों की मरम्मत और पक्कीकरण हो ताकि आवागमन सुगम हो सके।

स्वास्थ्य केंद्र या मोबाइल हेल्थ वैन की व्यवस्था की जाए क्योंकि आस-पास कोई सरकारी अस्पताल नहीं है।

क्या कहते हैं स्थानीय नेता और अधिकारी?

जब इस संदर्भ में ओबरा प्रखंड के एक पदाधिकारी से बात की गई तो उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि मस्तलिचक की स्थिति से वे वाकिफ हैं, और इस संबंध में प्रस्ताव भेजा गया है। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा-जदयू सरकार की प्राथमिकता गांवों का समग्र विकास है, और जल्द ही आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।

वहीं, एक स्थानीय जनप्रतिनिधि ने ग्रामीणों के आरोपों को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए कहा कि कई बार बजट की कमी और तकनीकी कारणों से कार्यों में देरी होती है, लेकिन वे खुद इस मुद्दे को लेकर जिला स्तर पर प्रयासरत हैं।

कब मिलेगा गांव को उसका हक?मस्तलिचक गांव की कहानी उन हजारों गांवों जैसी है, जो आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। नाली और विद्यालय जैसे मूलभूत ढांचे का अभाव न केवल स्वास्थ्य और शिक्षा, बल्कि ग्राम विकास के समग्र चित्र को प्रभावित करता है।

अगर समय रहते प्रशासन ने ग्रामीणों की आवाज नहीं सुनी, तो यह आक्रोश आंदोलन का रूप भी ले सकता है। ग्रामीणों की एक ही मांग है – हमें हमारे अधिकार चाहिए, वादे नहीं।

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