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औरंगाबाद समाहरणालय में बड़ा हादसा टला: जिला योजना पदाधिकारी घायल, अस्पताल में व्यवस्था पर भड़कीं जनसंपर्क पदाधिकारी

औरंगाबाद समाहरणालय में बड़ा हादसा टला: जिला योजना पदाधिकारी घायल, अस्पताल में व्यवस्था पर भड़कीं जनसंपर्क पदाधिकारी

|| News Era || Chitranjan Kumar ||

औरंगाबाद, बिहार – जिले के समाहरणालय परिसर में बुधवार की दोपहर उस समय हड़कंप मच गया जब एक बड़ा हादसा होते-होते टल गया। समाहरणालय भवन के छज्जे का एक हिस्सा अचानक गिर पड़ा, और इसकी चपेट में आ गए जिला योजना पदाधिकारी अविनाश प्रकाश, जो मौके पर मौजूद थे। हादसे में वे गंभीर रूप से घायल हो गए, और उन्हें तत्काल इलाज के लिए सदर अस्पताल ले जाया गया। यह घटना न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही की पोल खोलती है, बल्कि अस्पताल में इलाज के दौरान अफसरों के साथ हुए व्यवहार और वहां की अव्यवस्था ने भी नए सवाल खड़े कर दिए हैं।


छज्जा गिरते ही मचा अफरातफरी, अफसर घायल

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, समाहरणालय भवन का छज्जा जर्जर अवस्था में था। बिना किसी चेतावनी के वह अचानक भरभराकर गिर पड़ा, और नीचे खड़े जिला योजना पदाधिकारी अविनाश प्रकाश उसके चपेट में आ गए। छज्जे का एक हिस्सा उनके सिर और पीठ पर गिरा, जिससे वे मौके पर ही गिर पड़े और गंभीर रूप से घायल हो गए।

वहां मौजूद कर्मियों और अधिकारियों में भगदड़ मच गई। आनन-फानन में उन्हें जिला जनसंपर्क पदाधिकारी रत्ना प्रियदर्शनी ने अपनी देखरेख में इलाज के लिए सदर अस्पताल औरंगाबाद पहुंचाया। इस दौरान रत्ना प्रियदर्शनी ने अस्पताल प्रशासन को भी सूचित किया, ताकि तत्काल चिकित्सा मिल सके।


अस्पताल में दिखी लापरवाही, भड़की जनसंपर्क पदाधिकारी

अस्पताल पहुंचने पर पदाधिकारी की हालत को देखते हुए उन्हें ड्रेसिंग के लिए ऑपरेशन थिएटर (OT) में भेजा गया। लेकिन वहां एक और घटना ने सभी को चौंका दिया। OT में मौजूद ड्रेसर चंदन कुमार ने पदाधिकारी से कहा कि वे ड्रेसिंग टेबल (बेड) पर लेट जाएं। लेकिन जब अविनाश प्रकाश ने देखा कि बेड गंदा है, तो उन्होंने आग्रह किया कि वे कुर्सी पर बैठकर ही ड्रेसिंग करवा लेंगे।

इस पर ड्रेसर चंदन कुमार ने स्पष्ट रूप से कहा कि “कुर्सी मरीज के लिए नहीं है, नियम के अनुसार बेड पर ही लेटना होगा।”
यह सुनते ही साथ मौजूद जनसंपर्क पदाधिकारी रत्ना प्रियदर्शनी भड़क गईं। उन्होंने ड्रेसर को फटकारते हुए कहा –

“तुम्हें पता नहीं कि हम कौन हैं? अधिकारियों के साथ इस तरह का व्यवहार किया जा रहा है। यहां बहुत गंदगी है। इसकी शिकायत मैं सीधे डीएम से करूंगी।”

रत्ना प्रियदर्शनी का गुस्सा OT स्टाफ पर साफ नजर आया। उन्होंने अस्पताल की सफाई व्यवस्था और कर्मचारियों के व्यवहार पर कड़ा ऐतराज जताया और जल्द कार्रवाई की मांग की।


मीडिया कवरेज पर रोक लगाने की कोशिश

जैसे ही मीडिया को इस हादसे की जानकारी मिली, कई स्थानीय पत्रकार सदर अस्पताल पहुंच गए। वे जिला योजना पदाधिकारी के घायल होने और अस्पताल की बदहाली पर रिपोर्टिंग करने लगे। इसी दौरान डीपीएम (जिला कार्यक्रम प्रबंधक) मौके पर पहुंचे और मीडिया कर्मियों को कवरेज करने से मना कर दिया।

उन्होंने कहा कि –

“यह व्यक्तिगत मामला है और इसमें मीडिया कवरेज की आवश्यकता नहीं है। रही बात अस्पताल की व्यवस्था और गंदगी की, तो उस पर उचित कार्रवाई की जाएगी।”

उनके इस बयान से भी कई सवाल खड़े हो गए हैं – क्या सरकारी संस्थानों में पारदर्शिता नहीं होनी चाहिए? क्या मीडिया को इस प्रकार रोकना उचित है?


ड्रेसर को फटकार, आगे कार्रवाई के संकेत

घटना की जानकारी अस्पताल अधीक्षक तक पहुंची। उन्होंने तत्काल ड्रेसर चंदन कुमार को अपने कक्ष में बुलाया और पूरे मामले की जानकारी ली। उन्हें स्पष्ट निर्देश दिया गया कि भविष्य में मरीजों, खासकर वरिष्ठ अधिकारियों के साथ शालीनता से पेश आएं और अस्पताल की साफ-सफाई को प्राथमिकता दें।

अधीक्षक ने कहा कि –

“हमने पूरे मामले की जांच शुरू कर दी है। गंदगी और कर्मचारियों के व्यवहार की शिकायतें गंभीर हैं। दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।”


प्रशासनिक लापरवाही और संवेदनहीनता पर उठे सवाल

इस घटना ने औरंगाबाद प्रशासन की तैयारियों और समाहरणालय भवन की जर्जर स्थिति पर एक बार फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि छज्जा कुछ इंच और नीचे गिरता, तो यह हादसा और भी गंभीर हो सकता था। सवाल यह भी है कि वर्षों से उपयोग में आने वाली सरकारी इमारतों की नियमित जांच और मरम्मत क्यों नहीं कराई जाती?

इसके साथ ही अस्पताल में अधिकारियों तक के साथ हो रहे असम्मानजनक व्यवहार से यह स्पष्ट हो गया है कि आम लोगों को किस स्थिति का सामना करना पड़ता होगा।


जनमानस में आक्रोश, सोशल मीडिया पर उठी आवाजें

घटना के बाद सोशल मीडिया पर भी लोगों ने अपनी नाराजगी जाहिर की। स्थानीय लोगों और युवा नेताओं ने जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। कई लोगों ने यह भी कहा कि अगर अधिकारियों के साथ ऐसी स्थिति हो रही है, तो आम जनता की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।


औरंगाबाद समाहरणालय में हुआ यह हादसा और उसके बाद का घटनाक्रम न सिर्फ प्रशासनिक चूक को उजागर करता है, बल्कि स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में व्याप्त अव्यवस्थाओं और कर्मचारियों के असंवेदनशील रवैये की ओर भी इशारा करता है।
जहां एक तरफ सरकार डिजिटल और स्मार्ट प्रशासन की बात करती है, वहीं जमीनी स्तर पर अभी भी बुनियादी सुविधाएं और शिष्टाचार की कमी है। उम्मीद है कि इस घटना के बाद प्रशासन इस दिशा में ठोस कदम उठाएगा और दोषियों पर कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।

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