कैमूर डीएम सावन कुमार के नाम और तस्वीर का साइबर फ्रॉड में इस्तेमाल, प्रशासन सतर्क

कैमूर डीएम सावन कुमार के नाम और तस्वीर का साइबर फ्रॉड में इस्तेमाल, प्रशासन सतर्क
News Era || Rupesh Kumar Dubey
कैमूर, बिहार — कैमूर जिले में एक बेहद गंभीर और सनसनीखेज साइबर अपराध का मामला सामने आया है, जिसमें जिलाधिकारी (डीएम) सावन कुमार के नाम और उनकी तस्वीर का दुरुपयोग कर एक फर्जी मोबाइल नंबर से कॉल और व्हाट्सएप संदेश भेजे जा रहे हैं। इस साइबर फ्रॉड की खबर फैलते ही जिला प्रशासन और आम जनता में हड़कंप मच गया है।
यह मामला तब उजागर हुआ जब ट्रूकॉलर ऐप पर एक मोबाइल नंबर पर आईएएस सावन कुमार के नाम और उनकी फोटो के साथ कॉल किया जा रहा था। उस नंबर का इस्तेमाल कर स्कूलों और अन्य संस्थानों से कथित तौर पर कोई “काम” कराने का प्रयास किया गया।
प्रशासन की सख्त प्रतिक्रिया, साइबर सेल को सौंपी जांच
जिला प्रशासन कैमूर ने इस मामले को अति गंभीर मानते हुए तत्परता से साइबर थाना को जांच का आदेश दिया है। प्रशासन की तरफ से स्पष्ट किया गया है कि उक्त नंबर 7549618633 से की जा रही सभी कॉल और संदेश फर्जी हैं और इनका कोई संबंध जिलाधिकारी सावन कुमार से नहीं है।
कैमूर प्रशासन ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया पेज पर एक जन चेतावनी जारी की है, जिसमें कहा गया है:
“जिला प्रशासन के संज्ञान में यह मामला आया है कि कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा जिला पदाधिकारी कैमूर की तस्वीर का दुरुपयोग करते हुए, मोबाइल नंबर 7549618633 के माध्यम से जिले के कई सम्मानित नागरिकों को कॉल व व्हाट्सएप संदेश भेजे जा रहे हैं। यह एक साइबर फ्रॉड है। कृपया ऐसे किसी भी कॉल या संदेश पर विश्वास न करें, किसी भी प्रकार की निजी जानकारी साझा न करें और सतर्क रहें।”
ट्रूकॉलर पर बदल दी गई जानकारी, नाम और तस्वीर की हेराफेरी
जब इस मोबाइल नंबर की जानकारी ट्रूकॉलर जैसे मोबाइल एप्लिकेशन पर जांच की गई, तो उसमें जिलाधिकारी सावन कुमार का नाम और उनकी तस्वीर दिखाई दे रही थी। लेकिन बाद में इस नंबर पर नाम बदल कर “उत्कर्ष पांडेय” कर दिया गया। यह दर्शाता है कि साइबर ठग बड़ी चतुराई और तकनीकी समझ का उपयोग कर लोगों को भ्रमित कर रहे हैं।
इस फर्जीवाड़े का मकसद अभी तक पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाया है, लेकिन जिस तरह से सरकारी अधिकारी के नाम का प्रयोग किया गया है, उससे कई गोपनीय और संवेदनशील जानकारियों के लीक या दुरुपयोग की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
डीपीआरओ ने दी जानकारी, सोशल मीडिया पर सतर्कता संदेश जारी
जिला जनसंपर्क पदाधिकारी (DPRO) डॉ. संजीव कुमार सज्जन ने मामले की पुष्टि करते हुए बताया कि कुछ स्कूलों और अन्य संस्थानों को उक्त नंबर से कॉल किया गया और खुद को डीएम कैमूर बताते हुए कुछ काम करवाने की बात कही गई।
उन्होंने बताया:
“जैसे ही यह मामला सामने आया, प्रशासन ने तत्काल सोशल मीडिया के माध्यम से आम जनता को सतर्क किया। अभी तक किसी व्यक्ति से ठगी की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन यह साइबर अपराध की श्रेणी में आता है और गंभीर मामला है।”
जनता को अपील: किसी भी लिंक, कॉल या संदेश पर विश्वास न करें
जिला प्रशासन ने लोगों से आग्रह किया है कि वे किसी भी संदिग्ध कॉल, मैसेज या व्हाट्सएप चैट पर विश्वास न करें। खासकर जब कॉल करने वाला खुद को कोई सरकारी अधिकारी, डीएम, एसपी या मंत्री बताए।
प्रशासन ने कहा कि:
“सरकारी अधिकारियों के कार्यों के लिए हमेशा कार्यालयीन माध्यमों का उपयोग किया जाता है, न कि व्यक्तिगत नंबरों से कॉल कर कार्य कराने की कोशिश की जाती है।”
साइबर ठगों की नई चाल: अब अफसरों को बनाया जा रहा निशाना
साइबर अपराधियों द्वारा आम लोगों के साथ ठगी के मामले तो वर्षों से सामने आते रहे हैं, लेकिन अब इन अपराधियों की हिम्मत इस हद तक बढ़ गई है कि वे अब प्रशासनिक अधिकारियों की प्रतिष्ठा को भी निशाना बनाने लगे हैं।
डीएम जैसे उच्च अधिकारी के नाम और फोटो का इस्तेमाल कर फोन कॉल करना न सिर्फ एक गंभीर आपराधिक कृत्य है बल्कि इससे प्रशासनिक तंत्र में अविश्वास पैदा हो सकता है। ऐसे मामलों में यदि कोई झांसे में आ जाए तो वह गलत निर्णय ले सकता है जिससे आर्थिक और गोपनीय नुकसान की आशंका रहती है।
साइबर अपराधियों की पड़ताल में जुटी पुलिस
कैमूर पुलिस और साइबर सेल अब इस मोबाइल नंबर की तकनीकी जांच में जुटी है। कॉल डेटा रिकॉर्ड (CDR), व्हाट्सएप गतिविधि, आईपी एड्रेस, और डिवाइस लोकेशन जैसे पहलुओं की जांच की जा रही है।
पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर यह मामला प्राथमिकता से देखा जा रहा है और संभावित साजिशकर्ताओं के नेटवर्क तक पहुंचने की कोशिश की जा रही है।
आईटी अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत होगी कार्रवाई
इस साइबर अपराध के पीछे जो भी व्यक्ति या गिरोह शामिल हैं, उन पर आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66C, 66D और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 419, 420, 468, 469, और 500** के तहत कार्रवाई की जाएगी।
इन धाराओं के अंतर्गत धोखाधड़ी, पहचान की चोरी, फर्जीवाड़ा, मानहानि और धोखा देने के अपराध दर्ज किए जाते हैं, जिनकी सजा में 3 से 7 साल तक का कारावास और जुर्माना हो सकता है।
क्या कहते हैं साइबर विशेषज्ञ?
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार के अपराध रोकने के लिए आम लोगों को जागरूक करना सबसे ज़रूरी है। किसी भी नंबर से जब कोई कॉल आए और वह खुद को सरकारी अधिकारी बताए, तो बिना पुष्टि के कोई भी व्यक्तिगत या वित्तीय जानकारी साझा न करें।
विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि ट्रूकॉलर जैसे ऐप्स की जानकारी हमेशा भरोसेमंद नहीं होती, क्योंकि इनका डाटा उपयोगकर्ताओं द्वारा एडिट किया जा सकता है। इससे फर्जी पहचान बनाना बेहद आसान हो गया है।
तकनीक का दुरुपयोग, लेकिन सतर्कता ही बचाव
यह मामला एक स्पष्ट संकेत है कि साइबर ठग अब सिर्फ पैसे की ठगी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे अब प्रतिष्ठित अधिकारियों की पहचान का दुरुपयोग कर आम लोगों को भ्रमित करने लगे हैं।
जिला प्रशासन कैमूर की तत्परता और सोशल मीडिया के माध्यम से जारी चेतावनी सराहनीय कदम है, लेकिन इस घटना से यह भी स्पष्ट है कि प्रशासनिक अधिकारियों के डिजिटल सुरक्षा मानकों को और सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
अंततः, तकनीक का मुकाबला तकनीक से ही किया जा सकता है, लेकिन लोगों की जागरूकता और सतर्कता ही सबसे प्रभावी हथियार है।