एमएसपी दर पर उड़द और मूंग की खरीदी की मांग को लेकर भगवती मानव कल्याण संगठन का केसली तहसील में प्रदर्शन, चेताया आंदोलन का बिगुल
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एमएसपी दर पर उड़द और मूंग की खरीदी की मांग को लेकर भगवती मानव कल्याण संगठन का केसली तहसील में प्रदर्शन, चेताया आंदोलन का बिगुल
रिपोर्ट: महेंद्र सिंह लोधी (News Era) || तिथि : 13 जून 2025 ||
मध्यप्रदेश के सागर जिले के केसली तहसील में आज एक महत्वपूर्ण जन-आंदोलन की आहट सुनाई दी, जब भगवती मानव कल्याण संगठन के बैनर तले किसानों ने मंडी समिति और प्रशासनिक उपेक्षा के खिलाफ विरोध दर्ज कराते हुए MSP दर पर मूंग और उड़द की खरीदी की माँग को लेकर ज्ञापन सौंपा। यह प्रदर्शन केवल एक स्थानीय मामला नहीं, बल्कि सरकार की कृषि नीति और किसानों की आजीविका से जुड़ा एक संवेदनशील प्रश्न बन चुका है।
मुख्य विषय: क्या है मामला?
केन्द्र सरकार ने वर्ष 2025 में उड़द की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ₹7800 प्रति क्विंटल और मूंग की MSP ₹8768 प्रति क्विंटल निर्धारित की थी। लेकिन स्थानीय किसानों का आरोप है कि सरकार द्वारा MSP पर फसलों की खरीदी अब तक प्रारंभ नहीं की गई है, जिससे मूंग और उड़द की पक चुकी फसल को किसान मजबूरी में औने-पौने दाम पर व्यापारियों को बेच रहे हैं।
इस संकट से आक्रोशित होकर आज भगवती मानव कल्याण संगठन की केसली शाखा ने अपने पदाधिकारियों और क्षेत्रीय किसानों के साथ मिलकर अनुविभागीय अधिकारी (SDM) के माध्यम से मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश शासन को संबोधित ज्ञापन सौंपा।
ज्ञापन का मूल स्वरूप और माँगें:
ज्ञापन में प्रमुखतः निम्नलिखित बातें कही गईं:
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सरकार द्वारा घोषित MSP दरें केवल कागज़ों तक सीमित हैं, ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन नहीं हो रहा है।
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मूंग और उड़द की फसल पूर्णतः पक चुकी है और मंडियों में उपस्थिति के बावजूद MSP दर पर खरीदी नहीं हो रही।
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व्यापारी 5000–6000 रुपए प्रति क्विंटल तक की दर पर फसल खरीद रहे हैं, जिससे किसानों को प्रति क्विंटल 2000–3000 तक का घाटा हो रहा है।
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संगठन ने सरकार को चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र ही खरीदी प्रारंभ नहीं की गई तो संगठन किसानों के साथ मिलकर उग्र आंदोलन करेगा।
संगठन का पक्ष:
भगवती मानव कल्याण संगठन के प्रतिनिधि श्री मुलासिंह लोधी ने ज्ञापन सौंपते हुए मीडिया को बताया—
“यह सरकार किसानों को केवल चुनावी मुद्दा बनाकर छोड़ देना चाहती है। किसानों की मेहनत का उचित मूल्य न मिलना सबसे बड़ा अन्याय है। अगर सरकार ने हमारी मांगे शीघ्र नहीं मानी तो संगठन हर तहसील, हर जिले और फिर भोपाल तक आंदोलन करेगा।”
प्रशासन की प्रतिक्रिया:
ज्ञापन को स्वीकार करते हुए अनुविभागीय अधिकारी केसली ने संगठन के प्रतिनिधियों को भरोसा दिलाया कि—
“आपके ज्ञापन को मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंचाया जाएगा। राज्य शासन की खरीदी प्रक्रिया में जो भी बाधाएं हैं, उन्हें दूर करने का प्रयास किया जाएगा।”
हालांकि प्रशासन ने यह स्पष्ट नहीं किया कि खरीदी प्रक्रिया कब शुरू होगी या कोई निश्चित तिथि दी गई है या नहीं।
किसानों की स्थिति: ज़मीनी हकीकत
प्रदर्शन में उपस्थित किसान रमेश पटेल (ग्राम बम्होरी) ने कहा—
“हमने मूंग में पूरा निवेश किया, लेकिन अब ना मंडी में खरीदी हो रही है, ना व्यापारी MSP देते हैं। मजबूरी में हम फसल काटकर 5500-6000 में बेच रहे हैं, जबकि लागत ही 7000 के पार चली गई।”
एक अन्य किसान श्रीमती रेखा बाई कहती हैं—
“सरकार टीवी पर तो बहुत कुछ दिखाती है, लेकिन खेत में जाकर देखो, किसान कैसे रो रहा है। जब सरकारी दर पर फसल खरीदी नहीं जाती, तो हमें कर्ज और घाटे के बीच जीना पड़ता है।”
राजनीतिक माहौल और विरोध की संभावना
संगठन ने यह भी चेताया है कि यह केवल एक ज्ञापन नहीं, बल्कि एक चेतावनी पत्र है। यदि सरकार ने शीघ्र कदम नहीं उठाए, तो संगठन क्षेत्रीय स्तर से लेकर भोपाल तक का घेराव करेगा।
इसके संकेत स्वरूप संगठन ने “12/62 मॉडल” का उल्लेख किया। यानी 12 गांवों और 62 प्रमुख किसान प्रतिनिधियों को जोड़कर आंदोलन की अगली रणनीति बनाई जाएगी।
आंदोलन के संभावित चरण:
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तहसील स्तर पर धरना-प्रदर्शन (पहला चरण)
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जिला मुख्यालय पर किसान रैली (दूसरा चरण)
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भोपाल विधानसभा का घेराव और जनसभा (तीसरा चरण)
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जनसुनवाई अभियान और RTI के माध्यम से खरीदी की निगरानी (चौथा चरण)
मुद्दे की व्यापकता: केवल केसली नहीं, पूरा बुंदेलखंड पीड़ित
यह समस्या केवल केसली तहसील तक सीमित नहीं है। बुंदेलखंड के सागर, दमोह, पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर जैसे जिलों में मूंग और उड़द की ग्रीष्मकालीन खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। यदि खरीदी प्रक्रिया शीघ्र शुरू नहीं होती, तो यह मुद्दा राज्य सरकार के लिए बड़ा राजनीतिक संकट बन सकता है, विशेषकर आगामी स्थानीय निकाय चुनावों की पृष्ठभूमि में।
मांगें :
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ग्रीष्मकालीन मूंग और उड़द की फसल की तुरंत खरीदी प्रारंभ हो।
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MSP दर पर सभी पात्र किसानों को खरीदी केंद्र पर समय पर पर्ची और भुगतान दिया जाए।
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खरीदी केंद्रों की संख्या बढ़ाई जाए।
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सभी जिलों में निगरानी समिति की नियुक्ति हो जो खरीदी प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करे।
किसानों की यह लड़ाई केवल आर्थिक नहीं, सम्मान की भी है।
जब सरकारें MSP की घोषणा करती हैं, तो यह केवल एक सरकारी आदेश नहीं, किसानों से किया गया एक सामाजिक वादा होता है। यदि इस वादे को निभाने में देरी होती है, तो किसानों की आशाएं टूटती हैं और भरोसा कमजोर पड़ता है। केसली की यह घटना एक चेतावनी है कि किसानों की उपेक्षा अब आंदोलन का रूप ले रही है।
सरकार को चाहिए कि जल्द से जल्द खरीदी प्रक्रिया शुरू कर किसानों को राहत दे, अन्यथा भगवती मानव कल्याण संगठन जैसे संगठन राज्य भर में एक व्यापक किसान आंदोलन को जन्म दे सकते हैं।