‘कुर्मचक्र’ से दुनिया चकित, मलेशिया में डॉ. झा को सम्मान
वैदिक ज्योतिष पर डॉ. झा की प्रस्तुति ने मलेशिया में लहराया भारत का परचम, जीवन की चेतना और आपदा पूर्वानुमान प्रणाली पर हुआ वैश्विक विचार-विमर्श

मलेशिया में डॉ. राजनाथ झा को मिला ‘ग्लोबल एस्ट्रोलॉजिकल अवार्ड 2025’, कुर्मचक्र सिद्धांत से गूंजा अंतरराष्ट्रीय मंच
Report By : Pawan Rathor || Date : 04 Aug 2025 ||
भारत की प्राचीन वैदिक परंपरा और ज्योतिषीय विज्ञान को विश्वमंच पर एक बार फिर से नई पहचान और प्रतिष्ठा मिली है। यह उपलब्धि हासिल की है बिहार की राजधानी पटना के प्रतिष्ठित वैदिक ज्योतिषाचार्य और ज्योतिर्वेद विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. राजनाथ झा ने, जिन्हें मलेशिया में आयोजित एक भव्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में ‘ग्लोबल एस्ट्रोलॉजिकल अवार्ड – 2025’ से नवाजा गया।
इस सम्मेलन का आयोजन “श्री सुब्रमण्यम एस्ट्रोलॉजिकल एंड स्पिरिचुअल कन्वोकेशन – 2025” के अंतर्गत हुआ, जिसमें विश्व के विभिन्न देशों से ख्यातिप्राप्त ज्योतिषाचार्य, अध्यात्मविद, वैज्ञानिक और शोधकर्ता शामिल हुए थे। डॉ. झा को यह सम्मान विशेष रूप से उनके द्वारा प्रस्तुत ‘कुर्मचक्र सिद्धांत आधारित आपदा पूर्वानुमान प्रणाली’ के लिए दिया गया, जो उन्होंने दशकों के शोध और अनुभव के आधार पर विकसित किया है।
डॉ. झा को ‘ग्लोबल एस्ट्रोलॉजिकल अवार्ड 2025’
सम्मेलन में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी सम्मानित किया गया, जो वैदिक ज्योतिष में उनके दीर्घकालिक योगदान का प्रतीक है।
ज्योतिष: केवल भविष्यवाणी नहीं, ब्रह्मांड की चेतना का विज्ञान
सम्मेलन में डॉ. झा ने स्पष्ट किया कि वैदिक ज्योतिष केवल भाग्य बताने की विधा नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांड, प्रकृति और मनुष्य की चेतना के बीच संबंध को समझने का गहन विज्ञान है। उन्होंने कहा:
“ज्योतिष कोई रहस्यमयी विद्या नहीं, बल्कि समय और प्रकृति की वैज्ञानिक व्याख्या है। यह मनुष्य के कर्मों और प्रकृति के संकेतों के बीच संवाद की एक परिष्कृत भाषा है।”
उन्होंने अपने संबोधन में बताया कि कुर्मचक्र सिद्धांत के माध्यम से कैसे सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्रों और अन्य ग्रहों की गतियों को समझते हुए पृथ्वी पर घटित होने वाली प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, सुनामी और ज्वालामुखी विस्फोट आदि की संभावनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
डॉ. झा का सम्मेलन में संबोधन
डॉ. झा की इस प्रस्तुति ने सम्मेलन में उपस्थित विद्वानों को आश्चर्यचकित कर दिया और कई वैज्ञानिकों ने इसे ज्योतिष और पर्यावरण अध्ययन के बीच सेतु की संज्ञा दी।
संस्थागत ढांचे और शोध के बिना नहीं होगा वैश्विक नेतृत्व
डॉ. झा ने सम्मेलन में एक और महत्वपूर्ण बिंदु उठाया—भारत में वैदिक विज्ञानों के लिए संस्थागत और संरचनात्मक ढांचे की आवश्यकता। उन्होंने कहा कि—
“यदि भारत को ज्ञान नेतृत्व में अपनी भूमिका निभानी है, तो उसे अपने परंपरागत विज्ञानों को आधुनिक शोध, संरचना और शिक्षण के साथ जोड़ना होगा।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि देश में एक ‘राष्ट्रीय ज्योतिष परिषद’ या ऐसा ही कोई मंच होना चाहिए, जो वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, नीति-निर्माताओं और परंपरागत विद्वानों के बीच एक सशक्त संवाद स्थापित कर सके।
डॉ. झा का सम्मेलन में संबोधन
उनका यह सुझाव मात्र कोई मांग नहीं थी, बल्कि उन्होंने इसे एक वैचारिक आवश्यकता के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे यह नीतिगत पहल की दिशा में एक गरिमापूर्ण प्रस्ताव बन सके।
सम्मेलन का भव्य आयोजन और अंतरराष्ट्रीय उपस्थिति
इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता अध्यात्माचार्य स्वामी ध्यान रहस्यजी ने की, जबकि मलेशिया टूरिज्म के प्रतिनिधि जो मरीनस ने सम्मेलन का उद्घाटन किया। आयोजन की संयोजक थीं IVAF (International Vedic Astrology Federation) की डायरेक्टर दिव्या पिल्लई हरीश, जिन्होंने कार्यक्रम को अत्यंत व्यवस्थित और वैश्विक दृष्टिकोण के साथ आयोजित किया।
सम्मेलन में भारत, मलेशिया, श्रीलंका, इंडोनेशिया, जापान, अमेरिका और यूरोपीय देशों से भी कई विशेषज्ञ मौजूद रहे। इस विविधता ने कार्यक्रम को केवल एक ज्योतिष सम्मेलन नहीं, बल्कि एक वैश्विक वैचारिक संगोष्ठी का रूप दे दिया।
डॉ. झा की प्रस्तुति और उनके विचारों को सुनने के बाद कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने भारत के वैदिक ज्ञान की प्रशंसा की और इसे “ब्रह्मांडीय चेतना का अद्वितीय मॉडल” कहा।
“ज्योतिष आत्मबोध की प्रणाली है” — डॉ. झा
अपने भाषण में डॉ. झा ने यह भी कहा कि—
“ज्योतिष आत्मबोध की प्रणाली है। यह बताता है कि हमारे भीतर का ब्रह्मांड किस गति से चल रहा है और हम उसमें कितने सजग हैं।”
उनका यह कथन सिर्फ वैदिक दर्शन का सार नहीं है, बल्कि यह आज की व्यावसायिक और तात्कालिक सोच से परे जाकर आत्म-अवलोकन और चेतनासंपन्न जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
भारत की वैदिक परंपरा को मिला अंतरराष्ट्रीय सम्मान
डॉ. झा को मिले सम्मान को केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि के रूप में देखना उचित नहीं होगा। यह दरअसल भारत की हजारों वर्षों पुरानी वैदिक ज्ञान परंपरा को मिली वैश्विक मान्यता का प्रतीक है।
सम्मेलन के समापन के दौरान डॉ. झा ने कहा—
“भारत के वेद, उपनिषद और ज्योतिष ही उसकी पहचान हैं। यही वो नींव है जिस पर ‘विश्वगुरु भारत’ की पुनर्स्थापना की जा सकती है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि वैश्विक संकटों और प्राकृतिक असंतुलनों के समय में भारतीय ज्ञान प्रणाली एक संतुलनकारी मार्गदर्शक सिद्ध हो सकती है, बशर्ते उसे वैज्ञानिक रूप से विकसित और प्रस्तुत किया जाए।
मलेशिया में आयोजित इस सम्मेलन में डॉ. राजनाथ झा को मिला सम्मान यह दर्शाता है कि भारत की प्राचीन विद्या केवल अतीत की धरोहर नहीं है, बल्कि यह आज और आने वाले कल के लिए भी प्रासंगिक है।
डॉ. झा की प्रस्तुति और उनके विचारों ने यह साबित कर दिया कि यदि वैदिक ज्योतिष को आधुनिक विज्ञान, तकनीक और वैश्विक संवाद से जोड़ा जाए, तो यह समस्या समाधान की दिशा में एक क्रांतिकारी योगदान दे सकता है।
यह सम्मान न केवल एक व्यक्ति का है, बल्कि पूरे भारत की ज्ञान परंपरा, शोध संस्कृति और सांस्कृतिक गरिमा का अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति प्राप्त करना है।