Report by: Shubham || Date: 4sept2024
नीतीश के बाद आखिर कौन, कौन जुटे तयारी में और क्यों, कितने नेताओ ने बंटा संगठन, इतनी कम समय में क्यों बने गई नई प्रदेश कार्य समिति
तारीख- 24 अगस्त 2024
जदयू की प्रदेश कार्य समिति को भंग करने का नोटिफिकेशन जारी किया गया। इसके 1 घंटे के भीतर नई प्रदेश कार्य समिति की घोषणा कर दी गई। 60 मिनट में जारी दो नोटिफिकेशन में अंतर बस इतना था कि कार्य समिति में पदाधिकारियों की संख्या 251 से घटाकर 115 कर दी गई।
पार्टी की तरफ से कहा गया कि लोकसभा चुनाव की समीक्षा के बाद ये एक्शन लिया गया। प्रदेश के ऐसे नेता जो निष्क्रिय थे, लोकसभा चुनाव में जिनका प्रदर्शन सही नहीं था, उन पर कार्रवाई की गई है। लेकिन, असल में नई टीम में ललन सिंह और अशोक चौधरी के करीबियों को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया। इससे पहले राष्ट्रीय पदाधिकारियों की सूची में भी कई नेता के करीबियों पर कैंची चली थी।
तारीख- 29 अगस्त 2024
जहानाबाद में जदयू के क्षेत्रीय कार्यालय के उद्घाटन के मौके पर जिले के प्रभारी और ग्रामीण कार्य मंत्री अशोक चौधरी ने भूमिहारों को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया। बिना नाम लिए उन्होंने पार्टी के सीनियर लीडर रहे जगदीश शर्मा पर जमकर निशाना साधा। अशोक चौधरी के इस बयान से पार्टी के सभी सीनियर नेताओं ने किनारा कर लिया।
अशोक चौधरी भले सार्वजनिक तौर पर इस बात से इनकार करते रहे कि वे पार्टी के भीतर नंबर-2 नहीं हैं। लेकिन, उनकी हालिया एक्टिविटी इस ओर इशारा कर रही थी कि पार्टी में उनका कद काफी बड़ा है। चंदेश्वर चंद्रवंशी को जहानाबाद से लड़ाने का निर्णय नीतीश कुमार का था। भूमिहारों के विरोध से वे हारे। अशोक चौधरी ने इस हार को सवर्ण वर्सेज अति-पिछड़ा बनाने की कोशिश की, लेकिन पार्टी के किसी बड़े नेता का सपोर्ट उन्हें नहीं मिला। अब पार्टी के भीतर वे पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं।
तारीख- 1 सितंबर 2024
पार्टी के सीनियर लीडर केसी त्यागी ने राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता के पद से इस्तीफा दे दिया। अपने इस्तीफे में उन्होंने लिखा कि निजी व्यस्तता के कारण पार्टी के प्रवक्ता पद के साथ न्याय नहीं कर पा रहे थे। सवाल ये उठा कि एक सप्ताह पहले 23 अगस्त को उन्हें ये जिम्मेदारी दी गई थी, उस वक्त उन्होंने पद क्यों स्वीकार किया?
मैसेज साफ है कि भाजपा के खिलाफ बयानबाजी अब नहीं चलेगी। त्यागी भले इस्तीफे को अपना निजी मामला बता रहे हो, लेकिन मैसेज स्पष्ट है कि अब गठबंधन में बाधा बनने वालों के लिए कोई विकल्प नहीं है। चाहे वे कितने भी प्रिय क्यों न हो। केसी त्यागी लगातार अग्निवीर योजना से लेकर लेटरल एंट्री, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा से लेकर इजरायल को सपोर्ट करने तक एनडीए के लाइन से अलग बयानबाजी कर रहे थे।
जदयू में मात्र 8 दिनों के भीतर हुए इस घटनाक्रम के बाद सियासी गलियारों में अटकलें शुरू हो गई है कि क्या पार्टी के अंदर खाने में सब कुछ सही नहीं है? क्या जदयू में एक बार फिर से गुटबाजी बढ़ गई है? क्या जदयू अब किसी भी सूरत में बीजेपी के साथ नाता नहीं तोड़ना चाहती हैं? क्या जदयू के बड़े नेता अब अपने-अपने जुगाड़ में जुट गए हैं?
क्या जदयू में एक बार फिर से गुटबाजी शुरू हो गई है ?
इससे पहले आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था, तब ऐसा आरोप लगा था कि पार्टी के भीतर आरसीपी सिंह ने अपना एक पैरलल सिस्टम डेवलप कर लिया था। यही कारण है कि उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया था। सियासी गलियारों में चल रही अटकलों की माने तो पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद संजय झा संगठन को अब पूरी तरीके से अपने हिसाब से तैयार करना चाहते हैं।
यही कारण है कि ललन सिंह के करीबियों को पार्टी से किनारे किया जा रहा है। दूसरी तरफ अशोक चौधरी भी अपना दबदबा बनाए रखना चाहते हैं। इन सब के बीच मनीष वर्मा की एंट्री संगठन में हो गई है। चर्चा इस बात की है कि संगठन के भीतर वो अपना एक धड़ा तैयार करने में जुटे हैं। परोक्ष तौर पर हर कोई नीतीश का उत्तराधिकारी साबित करने में जुटे हैं।