Report by: Bipin Kumar || Date: 07 Oct 2024
बिहार की सियासत दशकों से संपूर्ण क्रांति के अगुवा लोकनायक जयप्रकाश नारायण और उनके शिष्यों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. सूबे के सत्ता संसार का 1990 से लेकर अब तक जो दो कद्दावर चेहरे केंद्रबिंदु रहे हैं, वह राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव और जनता दल (यूनाइटेड) अध्यक्ष नीतीश कुमार भी जेपी के ही शिष्य हैं. लालू यादव पहले ही अपनी सियासी विरासत अपने बेटे तेजस्वी यादव को सौंप चुके हैं. नीतीश कुमार की उम्र भी 74 साल होने को है. नीतीश कुमार ने 2020 के बिहार चुनाव में अंतिम चरण का प्रचार थमने से ठीक पहले यह कहा भी था,
“ये मेरा आखिरी चुनाव है.” यानी सीएम नीतीश कुमार भी एक्टिव पॉलिटिक्स से संन्यास के संकेत दे चुके हैं.
ऐसे में बात अब बिहार की राजनीति के दो फ्रंट को लेकर हो रही है. पहला ये कि क्या सूबे की सियासत के विशाल वट-वृक्ष रहे जेपी के शिष्यों से आगे आगे बढ़ रही है और दूसरा ये कि जेपी के शिष्यों के बाद कौन? लालू यादव और नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में जेपी के शिष्यों की अंतिम पौध हैं.
लालू यादव चारा घोटाला केस में दोषी ठहराए जाने, सजा सुनाए जाने के बाद चुनावी राजनीति से पहले ही दूर हो चुके हैं.
नीतीश कुमार की अगुवाई वाली सरकार में लंबे समय तक डिप्टी रहे बीजेपी के सुशील मोदी अब रहे नहीं. ऐसे में सीएम नीतीश कुमार ही जेपी की नर्सरी से सियासत में आए ऐसे अंतिम नेता बचे हैं जो सत्ता की ड्राइविंग सीट पर है.
ऐसे में कहा जा रहा है कि बिहार की राजनीति अब जेपी के शिष्यों से आगे बढ़ चली है.जेपी के शिष्यों से आगे की सियासत में विकल्प की होड़ भी छिड़ चुकी है. विकल्प बनने की इस होड़ में कई यूथ फेस हैं.
यूथ फेस की इस जंग में लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव से लेकर रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के अध्यक्ष मुकेश सहनी जैसे नाम शामिल हैं.
इस त्रिकोणीय लड़ाई में अब चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर उर्फ पीके की भी एंट्री हो गई है. पीके जन सुराज पार्टी के नाम से दल बनाकर चुनाव मैदान में आ गए हैं और यूथ फेस की ये जंग अब चतुष्कोणीय हो गई है.
इन चारो चेहरों की एक खास बात है कि इनकी सियासी लीक कहीं न कहीं जेपी के विचारों के आसपास ही है. किसकी लीक कैसे जेपी और उनके विचारों के करीब है?
पहला तेजस्वी यादवः
तेजस्वी यादव जिस आरजेडी की ओर से मुख्यमंत्री के दावेदार हैं, वह पार्टी जेपी के शिष्य और उनके पिता लालू यादव ने बनाई है. आरजेडी की स्थापना के समय से ही ओबीसी और अल्पसंख्यक पार्टी का कोर वोटर रहे हैं.
मुस्लिम और यादव (एमवाई) आरजेडी का कोर वोटर माना जाता है लेकिन तेजस्वी यादव की रणनीति अब आधार बढ़ाने की है. आरजेडी को ए टू जेड की पार्टी बताते हुए तेजस्वी कहते हैं कि हम एम-वाई नहीं, बाप (बहुजन, अगड़ा, आधी आबादी और गरीब) की पार्टी हैं.
दुसरा चिराग पासवानः
लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के संस्थापक रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान भी जेपी के शिष्यों की छाया के बाद की राजनीति में अपने लिए अवसर तलाश रहे हैं. चिराग की पार्टी दलित पॉलिटिक्स की पिच पर मजबूत प्लेयर मानी जाती है और उनकी रणनीति बिहार प्राइड के भावनात्मक प्लॉट पर बुलंद सियासी ईमारत खड़ी करने की है. चिराग के पिता रामविलास भी बिहार के कद्दावर नेता थे लेकिन कभी सरकार का इंजन नहीं बन सके. वह लालू यादव और नीतीश कुमार से सीनियर थे. रामविलास, जेपी के आंदोलन में शामिल भी नहीं हुए थे. हालांकि, वह आपातकाल विरोधी आंदोलन में जेल गए थे.
तीसरा बात मुकेश सहनीः
मुकेश सहनी भी पिछड़ा वर्ग की ही राजनीति करते हैं, निषाद यानी मछुआरा समाज की. उनकी राजनीति का मुख्य मुद्दा मछुआरा समाज के लिए आरक्षण की व्यवस्था है. मुकेश सहनी भी युवा चेहरे हैं, सेट डिजाइनर से सियासत में आए हैं.उनकी पार्टी बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए में भी रह चुकी है. 2020 के बिहार चुनाव में मुकेश सहनी की पार्टी के चार विधायक जीतकर आए थे जो बाद में बीजेपी में शामिल हो गए थे. वह लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आरजेडी की अगुवाई वाले महागठबंधन में शामिल हो गए थे.
चौथा और अंतिम प्रशांत किशोरः
प्रशांत किशोर जिस सियासी लीक पर बढ़ते दिख रहे हैं, वह भी कहीं न कहीं जेपी के सिद्धांतों-बातों के इर्द-गिर्द ही नजर आती है. जेपी उन नेताओं में से हैं जिन्होंने राइट टू रिकॉल की मांग को अपनी आवाज देकर बुलंद किया था. राइट टू रिकॉल की पैरवी खुद सीएम नीतीश कुमार भी कर चुके हैं लेकिन इस दिशा में कभी कुछ हुआ नहीं. अब पीके ने जन सुराज पार्टी की लॉन्चिंग से पहले ही न सिर्फ राइट टू रिकॉल की बात करते हुए यह भी बताया है कि वो इस व्यवस्था को कैसे लागू करेंगे.