E-Paperhttps://newserahindi.com/wp-content/uploads/2024/01/jjujuu.gifUncategorizedटॉप न्यूज़दिल्ली NCRदुनियादेश

वन नेशन, वन इलेक्शन: कैबिनेट की मुहर के बाद संसद में पेश होगा ऐतिहासिक बिल

रास्ट्रीय खबर

वन नेशन, वन इलेक्शन: कैबिनेट की मुहर के बाद संसद में पेश होगा ऐतिहासिक बिल

Report By : Bipin kumar || Date : 14 Dec 2024 ||

16 दिसंबर: देश में चुनावी प्रणाली में ऐतिहासिक बदलाव लाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए केंद्र सरकार ने “वन नेशन, वन इलेक्शन” (एक देश, एक चुनाव) बिल को मंजूरी दे दी है। कैबिनेट की मुहर के बाद अब यह बहुचर्चित बिल 16 दिसंबर को संसद में पेश किया जाएगा।

क्या है वन नेशन, वन इलेक्शन?
“वन नेशन, वन इलेक्शन” का तात्पर्य लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने से है। इस पहल का मकसद चुनावों पर खर्च होने वाले संसाधनों को बचाना, विकास कार्यों को बिना किसी रुकावट के जारी रखना और बार-बार चुनाव प्रक्रिया से जनता और प्रशासन पर पड़ने वाले बोझ को कम करना है।

कैसे हुई शुरुआत?
“वन नेशन, वन इलेक्शन” का विचार कोई नया नहीं है। आजादी के बाद शुरुआती दशकों में देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाते थे। 1952, 1957, 1962 और 1967 में देशभर में एक ही समय पर चुनाव संपन्न हुए थे। लेकिन राजनीतिक और प्रशासनिक कारणों से यह व्यवस्था टूट गई और अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर कराए जाने लगे।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विचार को फिर से मजबूत करते हुए इसे प्रमुख मुद्दा बनाया। सरकार का मानना है कि बार-बार चुनावों के कारण विकास कार्यों पर असर पड़ता है और भारी धनराशि खर्च होती है।

कैबिनेट की मंजूरी और विधेयक का स्वरूप
सूत्रों के अनुसार, हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक हुई, जिसमें “वन नेशन, वन इलेक्शन” बिल को मंजूरी दी गई। इसके बाद अब इस विधेयक को 16 दिसंबर को संसद में पेश किया जाएगा। इस बिल में संवैधानिक संशोधन और कानूनी प्रावधानों को शामिल किया गया है ताकि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकें।

विपक्ष का रुख
“वन नेशन, वन इलेक्शन” बिल पर राजनीतिक दलों की राय बंटी हुई है। जहां सरकार इसे देश के लोकतंत्र को सशक्त करने वाला कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे संघीय ढांचे के खिलाफ मानता है। कांग्रेस, टीएमसी, डीएमके और कई क्षेत्रीय दलों ने इसे संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए विरोध दर्ज कराया है। विपक्ष का कहना है कि इस पहल से राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित होगी।हालांकि, बीजेपी और उसके सहयोगी दलों का मानना है कि बार-बार चुनावों के कारण न केवल आर्थिक बोझ बढ़ता है, बल्कि प्रशासनिक मशीनरी भी लंबे समय तक चुनावी मोड में बनी रहती है, जिससे विकास कार्य प्रभावित होते हैं।

आर्थिक और प्रशासनिक फायदे
वन नेशन, वन इलेक्शन के लागू होने से कई आर्थिक और प्रशासनिक लाभ होंगे:

  1. खर्च में कमी: चुनावों में भारी धनराशि खर्च होती है। अलग-अलग समय पर चुनाव कराए जाने से यह खर्च बढ़ जाता है। चुनाव आयोग, सुरक्षा बलों और सरकारी तंत्र की लागत कम होगी।
  2. व्यवस्था में सुधार: चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता लागू होने से कई विकास कार्य ठप हो जाते हैं। एक बार में चुनाव कराए जाने से यह समस्या दूर होगी।
  3. समय की बचत: बार-बार चुनाव के कारण प्रशासनिक मशीनरी का ध्यान भटकता है। इससे विकास और अन्य योजनाओं पर असर पड़ता है।
    संवैधानिक चुनौतियां
    वन नेशन, वन इलेक्शन को लागू करने के लिए कई संवैधानिक प्रावधानों में संशोधन की आवश्यकता होगी। संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में बदलाव करने होंगे। इसके अलावा, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं की कार्यावधि को भी एक समान करना होगा।

 

अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद

विशेष समिति की सिफारिशें
इस मुद्दे पर सरकार ने पहले ही एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था, जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे हैं। समिति ने अपनी रिपोर्ट में “वन नेशन, वन इलेक्शन” को व्यावहारिक और देशहित में बताया है। रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया है कि एक साथ चुनाव कराए जाने से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाया जा सकता है।

जनता की राय
इस बिल पर जनता की राय भी मिश्रित है। कई लोग इसे देश के आर्थिक और प्रशासनिक सुधार के लिए जरूरी कदम मानते हैं, जबकि कुछ लोगों को इससे संघीय ढांचे के कमजोर होने का डर है।

अंतरराष्ट्रीय उदाहरण
अनेक देशों में एक साथ चुनाव कराए जाते हैं। अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और स्वीडन जैसे देशों में चुनावों का समय निर्धारित होता है, जिससे प्रशासनिक मशीनरी और संसाधनों का सदुपयोग होता है।

आगे की राह
संसद में “वन नेशन, वन इलेक्शन” बिल पेश होने के बाद इस पर जोरदार बहस होने की संभावना है। सरकार को इस बिल को पास कराने के लिए विपक्ष और राज्यों के समर्थन की जरूरत होगी। चूंकि यह संवैधानिक संशोधन से जुड़ा हुआ है, इसलिए इसे संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पास कराना होगा।

निष्कर्ष
“वन नेशन, वन इलेक्शन” देश की चुनावी प्रणाली में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। इससे चुनावों पर होने वाले खर्च को नियंत्रित किया जा सकेगा और विकास कार्यों को रुकावटों से बचाया जा सकेगा। हालांकि, इस कदम की सफलता के लिए केंद्र और राज्यों के बीच आपसी सहमति और समन्वय जरूरी है।

16 दिसंबर को संसद में पेश होने वाले इस विधेयक पर पूरे देश की नजरें टिकी हुई हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस ऐतिहासिक कदम को कितनी प्रभावी तरीके से आगे बढ़ा पाती है और देश की राजनीति किस दिशा में मुड़ती है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!