“संघर्ष से सफलता तक: सरोजा देवी की जीविका दीदी वाली जीवन यात्रा”
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“संघर्ष से सफलता तक: सरोजा देवी की जीविका दीदी वाली जीवन यात्रा”
Report By : Rupesh Kumar Dubey (News Era) || Date : 10 April 2025||
बिहार सरकार द्वारा ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से चलाई जा रही जीविका योजना ने न जाने कितनी ही ज़िंदगियों को नया मोड़ दिया है। इन्हीं में से एक नाम है कैमूर जिले के रामपुर प्रखंड के एकौनी गांव की रहने वाली सरोजा देवी का, जिनकी ज़िंदगी कभी मुफलिसी और भूख की चपेट में थी, लेकिन आज वही सरोजा देवी ई-रिक्शा चला कर न केवल अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं, बल्कि अपने बच्चों को बेहतर भविष्य देने की दिशा में आगे भी बढ़ रही हैं।
सरोजा देवी
तीन दशक पहले शुरू हुई थी संघर्ष की कहानी
सरोजा देवी की शादी आज से करीब 30 से 35 साल पहले एकौनी गांव में हुई थी। उस समय वह एक सपनों से भरी नवविवाहिता थीं, लेकिन जल्द ही उन्हें ज़िंदगी की कठोर सच्चाइयों से रूबरू होना पड़ा। उनके पति शराब के आदी थे, और नशे की लत ने उन्हें इस कदर जकड़ लिया था कि वे न तो घर की ज़िम्मेदारी उठाते थे और न ही बच्चों की परवाह करते थे।
सरोजा देवी बताती हैं, “शादी के कुछ सालों तक तो जैसे-तैसे गुज़ारा हुआ, लेकिन जैसे-जैसे बच्चे बड़े होने लगे, घर की ज़रूरतें भी बढ़ने लगीं। मेरे पति पूरी तरह शराब में डूब चुके थे। कोई काम-धंधा नहीं करते थे। ऐसे में बच्चों को पेट भर खाना देना भी मुश्किल हो गया था।”
भूखे पेट सोते थे बच्चे, टूटी नहीं मां की हिम्मत
जिस समय अधिकतर महिलाएं अपने पति के कमाई पर निर्भर होती हैं, उस समय सरोजा देवी ने परिस्थिति से हार मानने के बजाय उसका डटकर सामना करने की ठानी। उन्होंने खुद कमाने का फैसला किया। शुरुआत उन्होंने एक ठेले से की। स्थानीय मंडियों से सब्ज़ी लेकर वह गांव-गांव घूम-घूम कर सब्ज़ी बेचने लगीं।
“ठेले पर सब्ज़ी बेचना कोई आसान काम नहीं था। कई बार लोगों की बातें सुननी पड़ीं, समाज की ताने भी झेलनी पड़ीं, लेकिन मुझे अपने बच्चों का पेट पालना था। कोई और रास्ता नहीं था,” सरोजा भावुक होते हुए बताती हैं।
जीविका से जुड़कर मिला नया रास्ता
सरोजा देवी के जीवन में असली मोड़ तब आया जब उन्होंने बिहार सरकार की जीविका योजना के अंतर्गत एक स्वयं सहायता समूह से जुड़ाव बनाया। जीविका के माध्यम से उन्होंने आत्मनिर्भर बनने की ठानी और समूह की मदद से उन्होंने एक ई-रिक्शा लिया।
ई-रिक्शा मिलने के बाद उन्होंने अपने पुराने अनुभव का उपयोग करते हुए सब्ज़ी की बिक्री का दायरा बढ़ाया। अब वह सुबह 6 बजे कुदरा बाजार से ताज़ी सब्जियां लेकर आती हैं और आसपास के गांवों में घूम-घूमकर सब्जी बेचती हैं।
उनके कार्य के प्रति समर्पण और मेहनत को देखते हुए जीविका समूह ने उन्हें प्रोत्साहित किया और आगे भी आर्थिक व सामाजिक सहयोग देना जारी रखा।
ई-रिक्शा बना कमाई का मजबूत जरिया
ई-रिक्शा की मदद से सरोजा देवी की आमदनी में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई। सब्ज़ी बेचने के बाद बचे हुए समय में वह सवारी भी ढोने लगीं। इससे उनकी दैनिक आय 500 से 1000 रुपये तक होने लगी। आज उनके घर में भूख का साया नहीं है। बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं और परिवार का सम्मान समाज में बढ़ा है।
“ई-रिक्शा ने मेरी ज़िंदगी को बदल दिया। पहले जहां सब्ज़ी बेचने के बाद मेरी हिम्मत टूट जाती थी, वहीं अब सफर आसान हो गया है। मैं गांव-गांव जाकर सब्जियां भी बेचती हूं और साथ ही सवारी भी ढोती हूं। इससे आमदनी में बहुत फर्क पड़ा है,” सरोजा बताती हैं।
बेटी की शादी भी की, बेटों को पढ़ा रहीं
सरोजा देवी के चार बच्चे हैं – तीन बेटे और एक बेटी। उनके कठिन परिश्रम और जीविका योजना से मिली सहायता का परिणाम यह हुआ कि उनकी बड़ी बेटी रानी कुमारी को उन्होंने इंटर तक पढ़ाया और फिर धूमधाम से उसकी शादी भी कर दी।
“जब मेरी बेटी इंटर पास हुई, तो मैं बहुत खुश हुई। मेरी हसरत थी कि उसकी शादी अच्छे घर में हो और वही हुआ। आज वह खुश है, यही मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है,” सरोजा कहती हैं, उनकी आंखों में संतोष की चमक साफ झलकती है।
अब वह अपने दो बेटों और एक बेटी को पढ़ाई करवा रही हैं। उनका सपना है कि उनके बच्चे एक दिन अच्छी नौकरी करें और समाज में सम्मान के साथ जीवन जीएं।
समाज में बनी मिसाल, गांव की महिलाएं ले रही हैं प्रेरणा
आज सरोजा देवी एक मिसाल बन चुकी हैं। उनके गांव की कई महिलाएं अब जीविका से जुड़ रही हैं और अपने जीवन में बदलाव ला रही हैं। सरोजा देवी खुद भी अब अन्य महिलाओं को प्रोत्साहित करती हैं कि वे भी आत्मनिर्भर बनें।
“अगर मैं कर सकती हूं, तो बाकी महिलाएं क्यों नहीं? बस हिम्मत चाहिए। जीविका जैसी योजनाएं हमारे लिए सहारा हैं, बस उन्हें सही से अपनाने की ज़रूरत है,” सरोजा मुस्कुराते हुए कहती हैं।
जीविका योजना की भूमिका
बिहार सरकार द्वारा शुरू की गई जीविका योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है। इसके अंतर्गत महिलाएं स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर लोन, प्रशिक्षण और संसाधन प्राप्त कर सकती हैं। सरोजा देवी जैसी महिलाएं इस योजना की असली सफलता की प्रतीक हैं।
जीविका के एक स्थानीय समन्वयक बताते हैं, “सरोजा देवी जैसी महिलाएं हमारी प्रेरणा हैं। उन्होंने यह साबित किया है कि सही मार्गदर्शन और थोड़ी सी सहायता से कोई भी महिला आत्मनिर्भर बन सकती है।”
सरोजा देवी की कहानी – संघर्ष से सफलता तक
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नाम: सरोजा देवी
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गांव: एकौनी, प्रखंड – रामपुर, जिला – कैमूर
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व्यवसाय: सब्ज़ी विक्रेता व ई-रिक्शा चालक
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जीविका से जुड़ाव: पिछले 5 वर्षों से
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दैनिक आमदनी: ₹500 से ₹1000
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उपलब्धि: बेटी को पढ़ाकर शादी करना, बेटों को शिक्षित करना
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प्रेरणा: आत्मनिर्भर बनने की जिद और जीविका योजना की सहायता
सरोजा देवी की कहानी सिर्फ एक महिला की संघर्षगाथा नहीं है, बल्कि यह एक पूरा आंदोलन है – आत्मनिर्भरता, हौसले और उम्मीद का आंदोलन। यह साबित करता है कि जब किसी को थोड़ा सहारा मिल जाए और वह मेहनत करने को तैयार हो, तो वह किसी भी हालात को मात दे सकता है। जीविका योजना ने न केवल सरोजा की ज़िंदगी बदली, बल्कि उसके बच्चों के सपनों को भी उड़ान दी।
बिहार सरकार की यह योजना अगर इसी तरह सशक्त तरीके से लागू होती रही, तो निश्चित ही राज्य की हज़ारों महिलाएं सरोजा देवी की तरह खुद भी बदलेंगी और दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनेंगी।