“स्कूल बना श्रमशाला: कैमूर में बच्चों से काम कराते शिक्षकों का वीडियो वायरल!
Kaimur News

“स्कूल बना श्रमशाला: कैमूर में बच्चों से काम कराते शिक्षकों का वीडियो वायरल!
Report By : Rupesh Kumar Dubey (News Era) || Date : 20 April 2025 ||
कैमूर (बिहार)
बिहार के कैमूर जिले से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है जिसने शिक्षा व्यवस्था की जमीनी हकीकत को एक बार फिर बेनकाब कर दिया है। रामपुर प्रखंड अंतर्गत करमचट थाना क्षेत्र स्थित न्यू प्राथमिक विद्यालय दुबौली में नाबालिग स्कूली बच्चों से शारीरिक श्रम कराए जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। वीडियो में साफ़ तौर पर देखा जा सकता है कि स्कूल ड्रेस में छोटे-छोटे बच्चे भारी भरकम बक्से एक जगह से दूसरी जगह ढो रहे हैं। यह घटना सिर्फ बाल अधिकारों का उल्लंघन नहीं, बल्कि शिक्षा की पवित्रता पर एक करारा तमाचा है।
वायरल वीडियो ने खोली पोल
इस वायरल वीडियो में स्कूल के परिसर में बच्चों को भारी बक्से ढोते हुए साफ़ देखा जा सकता है। ये बक्से स्कूल भवन से उठाकर किसी अन्य स्थान पर ले जाए जा रहे हैं। खास बात यह है कि बच्चों से यह काम उनके मासूम मन को बहला-फुसला कर कराया जा रहा है। वीडियो में एक शिक्षिका की मौजूदगी भी दर्ज है, जो बच्चों को कार्य करने के लिए प्रेरित करती नजर आ रही हैं। वहीं एक क्लिप में शिक्षिका एक छात्रा को ‘पगला’ (पागल) कहकर अपमानित करती हुई भी देखी जा सकती हैं। यह न केवल असंवेदनशीलता को दर्शाता है, बल्कि मानसिक उत्पीड़न की श्रेणी में भी आता है।
शिक्षक या शोषक?
जहां एक ओर शिक्षक को समाज में ‘गुरु’ की उपाधि दी जाती है, वहीं इस वीडियो ने कुछ शिक्षकों की संवेदनहीनता की तस्वीर पेश कर दी है। विद्यालयों को बच्चों के सर्वांगीण विकास का केंद्र माना जाता है, लेकिन जब वही संस्थान शोषण के केंद्र बन जाएं तो यह पूरे तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े करता है। ग्रामीणों का कहना है कि यह कोई पहली घटना नहीं है। पहले भी विद्यालय में बच्चों से साफ-सफाई, सामान उठवाना, फाइल ले जाना और अन्य गैर-शैक्षणिक कार्य कराना आम बात रही है।
बाल अधिकारों का खुला उल्लंघन
भारत में “बाल श्रम निषेध अधिनियम” (Child Labour Prohibition and Regulation Act) के अंतर्गत नाबालिगों से किसी भी प्रकार का शारीरिक श्रम कराना अपराध की श्रेणी में आता है। इसके अलावा राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की स्पष्ट गाइडलाइन्स हैं कि विद्यालय परिसरों में छात्रों से केवल शैक्षणिक और विकासात्मक गतिविधियाँ ही कराई जानी चाहिए। इस प्रकार की घटनाएं इन नियमों की खुली अवहेलना हैं।
स्थानीय लोगों में आक्रोश
घटना सामने आने के बाद क्षेत्रीय जनता में गहरा आक्रोश देखा जा रहा है। स्थानीय निवासी कहते हैं, “हम अपने बच्चों को स्कूल इसलिए भेजते हैं ताकि वे कुछ सीख सकें, तरक्की कर सकें। लेकिन यहां तो बच्चों से मजदूरी कराई जा रही है। यह तो अन्याय है।”
एक अन्य अभिभावक ने कहा, “जब शिक्षिका ही बच्चों का मानसिक शोषण करेंगी, तो वे शिक्षा से कैसे जुड़ाव महसूस करेंगे?”
रामपुर प्रखंड की प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी (BEO) तेजस्विनी आनंद
प्रशासनिक स्तर पर हलचल
वीडियो के वायरल होते ही शिक्षा विभाग और प्रशासनिक महकमे में खलबली मच गई है। रामपुर प्रखंड की प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी (BEO) तेजस्विनी आनंद से जब इस मुद्दे पर बात की गई तो उन्होंने स्पष्ट किया, “मामले को गंभीरता से लिया गया है। एक जांच समिति का गठन किया जा रहा है, जो सोमवार तक विस्तृत जांच कर रिपोर्ट सौंपेगी। यदि किसी भी स्तर पर दोष पाया गया, तो निश्चित रूप से कठोर कार्रवाई की जाएगी।”
शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल
यह घटना बिहार के शिक्षा तंत्र की कमजोरियों को उजागर करती है। राज्य सरकार भले ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए “विशेष सर्वेक्षण”, “विद्यालय अनुदान”, और “बुनियादी ढांचा सुधार” जैसी योजनाएं चला रही हो, लेकिन जब ज़मीनी स्तर पर इस तरह की घटनाएं हों, तो उन प्रयासों की सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह लगना लाज़मी है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया का इंतज़ार
घटना के बाद से अब तक किसी भी राजनीतिक दल की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन यह तय है कि अगर जांच में लापरवाही सिद्ध होती है, तो सरकार को विपक्ष के तीखे सवालों का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही, यह मामला बाल अधिकार संगठनों के लिए भी एक बड़ा मुद्दा बन सकता है।
आगे क्या?
अब सबकी निगाहें प्रशासन की कार्रवाई पर टिकी हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रशासन इस मामले को कितनी संवेदनशीलता और तत्परता से सुलझाता है। बच्चों के मनोबल और विश्वास को बहाल करना अब शिक्षकों और अधिकारियों दोनों की जिम्मेदारी बनती है।
न्यू प्राथमिक विद्यालय दुबौली की यह घटना शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त लापरवाहियों का जीवंत उदाहरण है। मासूम बच्चों से श्रम कराना केवल कानूनी अपराध नहीं, बल्कि नैतिक पतन का संकेत भी है। प्रशासन को इस मामले में त्वरित और पारदर्शी कार्रवाई कर यह संदेश देना चाहिए कि बच्चों की शिक्षा, सुरक्षा और सम्मान से कोई समझौता नहीं किया जा सकता।