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प्रो. सहनी को श्रद्धांजलि: शिक्षा और समाज का दीप

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प्रो. सहनी को श्रद्धांजलि: शिक्षा और समाज का दीप

रिपोर्ट : डॉ. आर.एन. चौरसिया (संस्कृत प्राध्यापक) News Era || Date: 21 अप्रैल २०२५ ||

सी.एम. कॉलेज, दरभंगा में रविवार को एक अत्यंत भावपूर्ण और प्रेरक वातावरण में अमर शहीद जुब्बा सहनी शोध एवं सेवा संस्थान के संस्थापक निदेशक, शिक्षा प्रेमी और समाज सुधारक प्रो. हरिश्चन्द्र सहनी की तीसरी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर केंद्र एवं राज्य सरकार के कई मंत्रियों, शिक्षाविदों, समाजसेवियों, साहित्यकारों और निषाद समाज के प्रतिनिधियों ने भाग लेकर प्रो. सहनी के अद्वितीय योगदान को याद किया।

प्रो. हरिश्चन्द्र सहनी: शिक्षा के माध्यम से सामाजिक क्रांति के प्रतीक

सभा के मुख्य अतिथि, भारत सरकार के जल शक्ति राज्य मंत्री डॉ. राज भूषण चौधरी निषाद ने कहा कि यदि समाज शिक्षित नहीं होगा, तो उसे अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। शिक्षा के महत्व को हर व्यक्ति को समझना होगा और अभावों के बावजूद भी संघर्ष कर आगे बढ़ने की प्रेरणा लेनी होगी। उन्होंने कहा, “प्रो. सहनी ने शिक्षा का अलख जगाकर समाज में परिवर्तन का दीप जलाया। आज भी निषाद समाज शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा है, और हमारी सरकार इसके उत्थान हेतु निरंतर प्रयास कर रही है।”

मंत्री ने बताया कि प्रो. हरिश्चन्द्र सहनी लंदन में ताम्रपत्र से सम्मानित हो चुके हैं और उन्होंने अब तक 18 पुस्तकों का लेखन कर समाज में चेतना की एक नई लहर जगाई है। उनकी अंतिम कृति “अंधविश्वास एवं दलित शोषण” का इस अवसर पर विमोचन भी किया गया।

प्रेरणा स्रोत थे प्रो. सहनी – संजय सरावगी

बिहार सरकार के भूमि सुधार एवं राजस्व मंत्री संजय सरावगी ने श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए कहा कि प्रो. सहनी न केवल एक महामानव थे, बल्कि गरीबों, दलितों और वंचितों की बुलंद आवाज भी थे। उन्होंने कहा, “प्रो. सहनी ने समाज के अंतिम व्यक्ति के उत्थान के लिए कार्य किया। वे सामाजिक दिशा-दशा को नया आयाम देने वाले प्रेरणा-पुरुष थे। उनकी पुस्तकों और विचारों से नई पीढ़ी को सीख लेनी चाहिए।”

बड़े समाज-सुधारक थे प्रो. सहनी – मंत्री हरि सहनी

पिछड़ा एवं अति पिछड़ा कल्याण मंत्री हरि सहनी ने कहा कि प्रो. हरिश्चन्द्र सहनी न केवल शिक्षा प्रेमी थे, बल्कि एक क्रांतिकारी समाज सुधारक भी थे। उन्होंने कहा कि वे सिर्फ एक शिक्षक नहीं थे, बल्कि समाज के मार्गदर्शक गुरु थे। उन्होंने समाज को जोड़ने और जागरूक करने का कार्य किया। मंत्री ने यह भी कहा कि सामाजिक संगठन समाज के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं और ऐसे संगठन जनकल्याणकारी कार्यों में अग्रणी होते हैं।

साहित्य के माध्यम से सामाजिक न्याय की आवाज – प्रो. सत्यवादी

सभा की अध्यक्षता कर रहे प्रो. हरिश्चन्द्र सहनी के बड़े पुत्र कृष्ण कुमार सत्यवादी उर्फ पप्पू सहनी ने संस्थान के उद्देश्यों को विस्तार से बताया और कहा कि “दलित साहित्य समाज का वास्तविक दर्पण है, जो सभी भेदभावों से ऊपर उठकर मानवता की बात करता है।” उन्होंने संत रविदास, कबीरदास और प्रो. सहनी की रचनाओं को दलित संवेदना का जीवंत दस्तावेज बताया।

काव्यांजलि और स्मृतियों का प्रवाह

सभा में डॉ. हीरालाल सहनी ने ‘स्मृति शेष डॉ. हरिश्चन्द्र सहनी’ शीर्षक कविता प्रस्तुत की, जिसका पाठ ध्रुव सहनी ने किया। वहीं अनेक वक्ताओं – डॉ. डी कुमार, भोला सहनी, गंगा प्रसाद, त्रिभुवन निषाद, बिन्देश्वर सहनी, सुभाष सहनी, पंडित वेद व्यास, प्रकाश सहनी, पिंकू लखमानी आदि ने प्रो. सहनी से जुड़े संस्मरण सुनाकर सभा को भावुक कर दिया।

सम्मान समारोह और समाज सेवा की प्रेरणा

श्रद्धांजलि सभा के दौरान शिक्षा और सेवा-कार्य में उत्कृष्ट योगदान देने वाले 21 व्यक्तियों को प्रशस्ति पत्र एवं उपहार देकर सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त निषाद समाज के विभिन्न सार्वजनिक पदों पर कार्यरत 21 अन्य लोगों को भी विशेष सम्मान प्रदान किया गया।

मंत्री डॉ. राज भूषण निषाद ने समाज के 101 गरीब बच्चों को स्टेशनरी किट – जिसमें किताबें, कॉपियां, पेंसिल, रबर, कटर आदि शामिल थे – वितरित कर उन्हें शिक्षा के लिए प्रेरित किया।

सांस्कृतिक प्रस्तुति और शिक्षा जागरूकता नाटक

कार्यक्रम में नव्या कुमारी ने मैथिली गीत पर आकर्षक नृत्य प्रस्तुत किया, जबकि सनोज शर्मा द्वारा निर्देशित शिक्षा जागरूकता एकांकी ‘यौ डॉ. साहब, अब हम की करब’ का मंचन किया गया। इस नाटक में अरुण ठाकुर, सनोज शर्मा और रघुवीर कुमार ने अभिनय कर दर्शकों को भावुक कर दिया।

सभा का संचालनकर्ता डॉ. आर.एन. चौरसिया (संस्कृत प्राध्यापक)

कार्यक्रम संचालन और समापन

सभा का संचालन डॉ. आर.एन. चौरसिया (संस्कृत प्राध्यापक) ने किया। स्वागत प्रो. सहनी के छोटे पुत्र डॉ. प्रेम कुमार निषाद ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन समाजसेवी रमण कुमार झा ने किया। स्वागत गीत सुजीत राम द्वारा प्रस्तुत किया गया, और अतिथियों का स्वागत पारंपरिक पाग, चादर एवं पुस्तकों से किया गया।


प्रो. सहनी की विरासत आज भी जीवित

श्रद्धांजलि सभा के माध्यम से यह स्पष्ट हुआ कि प्रो. हरिश्चन्द्र सहनी ने जो सामाजिक चेतना और शिक्षा का दीप जलाया था, वह आज भी समाज को रोशन कर रहा है। उनकी लेखनी, विचारधारा और सेवा कार्यों की गूंज आज भी शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में प्रेरणा बनकर जीवित है। यह आयोजन न केवल श्रद्धांजलि था, बल्कि एक सामाजिक संकल्प का मंच भी बना – जिसमें समाज के हर वर्ग तक शिक्षा और न्याय पहुँचाने की प्रतिबद्धता दोहराई गई।

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