डॉ. जगत नारायण नायक की “भक्ति से भरा काव्य विमोचन: दरभंगा में गूंजे संस्कार के स्वर”
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डॉ. जगत नारायण नायक की “भक्ति से भरा काव्य विमोचन: दरभंगा में गूंजे संस्कार के स्वर”
Report By : संस्कृत प्राध्यापक डॉ. आर.एन. चौरसिया, मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा || Date 22 May 2025 ||
दरभंगा, बिहार — साहित्य, संस्कृति और आध्यात्मिक चेतना के विलक्षण संगम का साक्षी बना दरभंगा का महाराज होटल सभागार, जहां मधुबनी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं श्रीराम जानकी सेवा संस्थान, दरभंगा के अध्यक्ष डॉ. जगत नारायण नायक की नवीनतम काव्य रचना “भक्त और भगवान” का भव्य विमोचन किया गया।
यह आयोजन सिर्फ एक पुस्तक विमोचन नहीं था, बल्कि यह समाज के उन मूल्यों की पुनर्स्थापना का उत्सव था जो आधुनिकता की अंधी दौड़ में कहीं पीछे छूट गए हैं। काव्य, जिसे समाज का दर्पण और मार्गदर्शक कहा जाता है, इस कार्यक्रम में केंद्रीय भूमिका में था।
आयोजन का भव्य शुभारंभ
कार्यक्रम की शुरुआत वैदिक परंपरा के अनुरूप दीप प्रज्वलन के साथ हुई, जिसमें मिथिला विश्वविद्यालय के पूर्व डीन प्रो. प्रभाष चन्द्र मिश्र, श्री नारायण मेडिकल कॉलेज, सहरसा के प्रधानाचार्य डॉ. दिलीप कुमार झा, संस्कृत प्राध्यापक डॉ. आर.एन. चौरसिया, और अन्य विशिष्ट अतिथियों ने भाग लिया। सभागार में लगभग 30 से अधिक शिक्षाविद, चिकित्सक, साहित्यप्रेमी एवं समाजसेवी उपस्थित थे।
‘भक्त और भगवान’ – श्रद्धा, भावना और संस्कारों का समावेश
डॉ. जगत नारायण नायक द्वारा रचित “भक्त और भगवान” एक ऐसी काव्य-पुस्तिका है, जो आध्यात्मिक भावनाओं, धार्मिक प्रतीकों और भक्ति रस में डूबी हुई है। इसमें कुल 23 कविताएं हैं, जो माँ दुर्गा, राधा-कृष्ण, श्रीराम-सीता, महादेव, गणेश, भक्त हनुमान जैसे देवी-देवताओं पर केंद्रित हैं।
पुस्तक का प्रत्येक पृष्ठ रंगीन एवं सचित्र है, जो न केवल पाठक की आस्था को पोषित करता है, बल्कि उसकी कल्पनाशीलता को भी नए पंख देता है। डॉ. नायक ने इसे अपनी पुण्यश्लोक माता जानकी देवी एवं पिता सीताराम नायक को समर्पित किया है, जिनकी स्मृतियों और विचारों ने इस काव्य-रचना को आकार दिया।
साहित्य को लेकर वक्ताओं के भाव
प्रो. प्रभाष चन्द्र मिश्र ने अपने उद्घाटन वक्तव्य में कहा,
“काव्य केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि समाज का संस्कार है। यह समाज की दिशा तय करता है। भक्त और भगवान जैसी पुस्तकें हमें अपनी जड़ों से जोड़ने में सहायक होती हैं।”
डॉ. शंभू नाथ महथा ने कहा,
“सीताराम नायक जी का जीवन संघर्ष और सफलता की मिसाल है। उनके पुत्र डॉ. जगत नारायण नायक ने अपने पिता के संस्कारों और आदर्शों को न केवल आत्मसात किया है, बल्कि उन्हें साहित्य के माध्यम से जीवंत बना रहे हैं।”
डॉ. डीके झा ने समाज में बढ़ती सांस्कृतिक रिक्तता की ओर इशारा करते हुए कहा,
“आज जब युवा पीढ़ी आधुनिकता की चकाचौंध में खो रही है, ऐसे में इस तरह की रचनाएं उसे फिर से संस्कृति और संस्कार की ओर ले जाती हैं।”
डॉ. अंजू कुमारी ने कहा,
“कविता केवल शब्द नहीं होती, वह आत्मा की आवाज़ होती है। यह पुस्तक युवा कवियों और पाठकों के लिए प्रेरणास्रोत बन सकती है।”
डॉ. विनय शंकर ने इसे साहित्यिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान बताते हुए कहा कि यह विमोचन समारोह दरभंगा के साहित्यिक इतिहास में एक प्रेरणादायक क्षण है।
भावनाओं से भरी सृजन यात्रा
डॉ. नायक ने अपने वक्तव्य में बताया कि उन्हें काव्य लेखन की प्रेरणा अपनी माता जानकी देवी से मिली। उनका मानना है कि लेखन केवल शब्दों का संयोजन नहीं बल्कि आत्मा की आवाज़ है।
उन्होंने बताया कि उनकी रचनाओं में श्रृंगार रस, वीर रस और व्यंग्य का सम्मिश्रण मिलेगा।
“हर कविता में एक व्यंग्य छिपा है, जो पाठक को न केवल भावनाओं से जोड़ता है बल्कि सोचने के लिए मजबूर करता है।” — डॉ. नायक
समाज में काव्य की प्रासंगिकता
डॉ. भवेश्वर मिश्रा ने कहा कि काव्य मानवीय भावनाओं का सुंदर और अर्थपूर्ण चित्रण है। यह समाज की घटनाओं का संवेदनात्मक प्रतिबिंब है।
डॉ. भारत कुमार मंडल ने कहा कि काव्य आत्मा के स्तर पर हमें जीवन के अर्थ और उद्देश्य को समझने में मदद करता है।
शिक्षक भरोसी पंडित ने कहा कि यह काव्य हमें “भक्त से भगवान” तक की यात्रा में सहायक होगा। यह पुस्तक जीवन के कठिन समय में मार्गदर्शक बन सकती है।
आयोजन की गरिमा और समापन
कार्यक्रम का संचालन सटीक, भावनात्मक और आकर्षक शैली में डॉ. गीतेन्द्र ठाकुर ने किया। अतिथियों का स्वागत और परिचय, कार्यक्रम की रूपरेखा और अंत में राष्ट्रगान के साथ समापन ने आयोजन को एक पूर्णता दी। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुनील पूर्वे ने किया।
क्यों महत्वपूर्ण है यह आयोजन?
इस विमोचन समारोह ने यह स्पष्ट कर दिया कि आज भी साहित्यिक रचनाएं समाज को दिशा देने की ताकत रखती हैं। जब शिक्षाविद और डॉक्टर जैसे पेशेवर साहित्य के मंच पर एकत्र होते हैं, तो वह समाज के समग्र विकास का प्रतीक बनता है।
भक्त और भगवान केवल कविताओं का संग्रह नहीं, यह एक भावनात्मक दस्तावेज है — जो लोकमानस को धर्म, संस्कार, आस्था और सामाजिक उत्तरदायित्व की ओर फिर से लौटने की प्रेरणा देता है।
विशेष बातें इस पुस्तक की:
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23 भक्तिपूर्ण कविताएं
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रंगीन और सचित्र प्रस्तुति
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रचनाएं देवी-देवताओं, पर्व-त्योहार और धर्म पर केंद्रित
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प्रत्येक कविता में एक सामाजिक संदेश या व्यंग्य का तत्व
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समर्पित माता-पिता को, जिनके संस्कार लेखक के जीवन का आधार रहे
समारोह की झलकियां:
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दीप प्रज्वलन में सांस्कृतिक भावनाओं की अभिव्यक्ति
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शिक्षाविदों का स्नेहिल और मार्गदर्शक संदेश
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साहित्य, संस्कृति और श्रद्धा का त्रिवेणी संगम
डॉ. जगत नारायण नायक की “भक्त और भगवान” पुस्तक एक आध्यात्मिक यात्रा है, जिसमें भक्ति, ज्ञान, संस्कार और समाज के प्रति दायित्व का गहरा भाव निहित है। ऐसे आयोजनों से यह आशा बलवती होती है कि हमारी आने वाली पीढ़ियां न केवल आधुनिक होंगी बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध होंगी।
यह आयोजन यह सिद्ध करता है कि साहित्य अभी भी जीवित है — और जब तक ऐसे लेखक, ऐसे विचारक, और ऐसे आयोजक हमारे बीच मौजूद हैं, तब तक समाज के संस्कार कभी समाप्त नहीं हो सकते।