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भभुआ प्रखंड के मोकरी गाँव में मुहर्रम तीजा पर पारंपरिक खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन

भभुआ प्रखंड के मोकरी गाँव में मुहर्रम तीजा पर पारंपरिक खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन, ज़िला परिषद सदस्य विकास सिंह उर्फ लल्लू पटेल ने किया उद्घाटन

|| न्यूज़ एरा संवाददाता: रुपेश दुबे || भभुआ, कैमूर ||

भभुआ प्रखंड के मोकरी गांव में मुहर्रम के तीजा के अवसर पर एक भव्य पारंपरिक खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस आयोजन का शुभारंभ भभुआ जिला परिषद सदस्य विकास सिंह उर्फ लल्लू पटेल ने फीता काट कर किया। इस अवसर पर गांव और आसपास के इलाकों से सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण मौजूद रहे, जिनमें युवाओं, बुजुर्गों और बच्चों का उत्साह देखते ही बनता था।

कार्यक्रम की शुरुआत उत्सवी माहौल में हुई। जैसे ही जिला परिषद सदस्य लल्लू पटेल कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे, स्थानीय युवाओं और आयोजकों ने उनका पारंपरिक तरीके से स्वागत किया। इसके बाद उन्होंने फीता काट कर प्रतियोगिता का विधिवत उद्घाटन किया और उपस्थित जनसमूह को संबोधित किया।

पारंपरिक खेलों का पुनर्जीवन: एक प्रयास
इस मौके पर ज़िला परिषद सदस्य लल्लू पटेल ने कहा,

“यह सिर्फ एक खेल प्रतियोगिता नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने का एक प्रयास है। आज जब आधुनिक खेलों के प्रति रुझान बढ़ रहा है, ऐसे में पारंपरिक खेलों को बढ़ावा देना ज़रूरी हो गया है।”

उन्होंने यह भी जानकारी दी कि इस प्रतियोगिता में बक्सर, भिट्टी और अमांव से आई टीमों ने हिस्सा लिया है। सभी टीमों ने शानदार प्रदर्शन किया और गांव के युवाओं में खासा जोश देखने को मिला।

ईनाम और सम्मान की घोषणा
प्रतियोगिता के दौरान यह ऐलान भी किया गया कि जो टीम सबसे बेहतर प्रदर्शन करेगी, उसे विशेष पुरस्कार से नवाजा जाएगा। इसके साथ ही स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों द्वारा खिलाड़ियों को प्रोत्साहन स्वरूप ट्रॉफी, मेडल और प्रशस्ति पत्र देने की भी व्यवस्था की गई है।

इमाम हुसैन कमेटी का आयोजन
इस कार्यक्रम का आयोजन नौकरी के इमाम हुसैन कमेटी की ओर से किया गया था, जो हर साल मुहर्रम के अवसर पर ऐसे आयोजन कर समाज को एकजुटता और भाईचारे का संदेश देती है। कमेटी के सदस्यों ने बताया कि तीजा के मौके पर होने वाले इस आयोजन की विशेष महत्ता होती है और यह गांव के सांस्कृतिक परंपरा का अहम हिस्सा बन चुका है।

सांप्रदायिक सौहार्द और ग्रामीण सहभागिता की मिसाल
यह आयोजन महज खेल का नहीं, बल्कि एक सामाजिक समरसता का उदाहरण था, जहाँ हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग साथ आए और मुहर्रम के इस विशेष दिन को खेलों के माध्यम से मनाया। ग्रामीणों का उत्साह और सहयोग देख आयोजक समिति भी काफी प्रसन्न दिखी।

अन्य गणमान्य लोगों की उपस्थिति
इस मौके पर पूर्व मुखिया रंजय पटेल, पूर्व मुखिया जयशंकर बिहारी, पंचायत समिति सदस्य नुरुहुल होदा, नचकू अंसारी, रवि पटेल सहित कई स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की उपस्थिति रही। सभी ने कार्यक्रम को सफल बनाने में सक्रिय भूमिका निभाई और खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाया।

पूर्व मुखिया जयशंकर बिहारी ने कहा,

“ऐसे आयोजन गांव की एकता और संस्कृति को मजबूती देते हैं। युवाओं को खेलों के माध्यम से अनुशासन, सम्मान और समर्पण का पाठ मिलता है।”

पंचायत समिति सदस्य नुरुहुल होदा ने भी इस तरह के आयोजनों को निरंतर करते रहने की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि सरकार और स्थानीय निकायों को ऐसे आयोजनों को सहयोग करना चाहिए।

खिलाड़ियों में दिखा उत्साह और अनुशासन
प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहे युवाओं में जबरदस्त उत्साह देखा गया। वे पूरे अनुशासन और जोश के साथ मैदान में उतरे। खेलों में पारंपरिक कुश्ती, दौड़, रस्साकशी और कबड्डी जैसी प्रतियोगिताएं शामिल थीं, जिनमें बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक की भागीदारी रही।

प्रतियोगिता का संचालन पूरी पारदर्शिता और न्यायप्रियता के साथ किया गया। रेफरी की भूमिका में गांव के ही अनुभवी खिलाड़ियों को रखा गया, जिन्होंने निष्पक्षता के साथ निर्णायक भूमिका निभाई।

स्थानीय युवाओं ने दिखाई प्रतिभा
प्रतियोगिता में स्थानीय युवाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कई युवाओं ने शानदार प्रदर्शन करते हुए अपनी खेल प्रतिभा का परिचय दिया, जिसे दर्शकों ने तालियों के साथ सराहा। कार्यक्रम के अंत में विजेता टीमों और खिलाड़ियों को प्रतीक चिन्ह, मेडल और नकद पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।

ग्रामीणों का सहयोग और महिलाओं की सहभागिता
इस आयोजन में गांव के लोगों ने भी खूब सहयोग किया। खासकर महिलाओं ने भी भोजन, जलपान और मेहमानों के सत्कार में सहयोग कर आयोजन को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई। बच्चों के लिए विशेष मनोरंजन की व्यवस्था की गई थी, जिससे वे भी इस आयोजन में शामिल हो सकें। मुहर्रम के तीजा पर आयोजित यह पारंपरिक खेलकूद प्रतियोगिता महज एक खेल आयोजन नहीं था, बल्कि यह सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण, सामाजिक समरसता और ग्रामीण प्रतिभाओं को मंच देने का एक सशक्त माध्यम बनकर सामने आया। भभुआ के मोकरी गांव में आयोजित यह कार्यक्रम यह साबित करता है कि आज भी ग्रामीण भारत में पारंपरिक विरासत को सम्मान देने और आगे बढ़ाने की भावना जीवित है।

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